बेसबब बेसाख़्ता रफ़्तार है कुछ कीजिये
लड़खड़ाती जिंदगी हर बार है कुछ कीजिये
उठ रही हैं उँगलियाँ सब आपके घर की तरफ़
हाशिये पर आपकी दस्तार है कुछ कीजिये
वक्त आते ही डसेगा एक दिन वो आपको
आस्तीं में पल रहा मक्कार है कुछ कीजिये
आपके घर की तरफ़ से आ रहे पत्थर सभी
आपके घर में छुपा गद्दार है कुछ कीजिये
इस तरह तो मुफ़्लिसी दम तोड़ देगी भूख से
आसमां को छू रहा बाज़ार है कुछ कीजिये
हैं मुखालिफ़ कुछ हवायें हो रही कमजोर छत
डगमगाती आपकी सरकार है कुछ कीजिये
काम की मसरूफ़यत से घूमने जाते नहीं
आज बच्चे कह रहे इतवार है कुछ कीजिये
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आद० समर कबीर भाई जी आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरी मेहनत सफल हुई आपका तहे दिल से बेहद शुक्रिया आपकी इस्साह बिलकुल सही है वो की जगह ये ठीक रहेगा
आद० तेजवीर सिंह जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया .
आद० रामअवध जी आपका तहे दिल से बेहद शुक्रिया .
आद. उस्मानी जी, आपको ग़ज़ल पसंद आई तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ
आ. राजेश दी, सादर आभिवादन ।अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
इस उम्दा ग़ज़ल के लिए ह्रदय से बधाई स्वीकार करें सादर |
आदरणीया राजेश कुमारी जी आदाब,
बहुत ही उम्दा ग़ज़ल । हर शे'र माकूल और कसावट लिए मारक क्षमता लिए । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
शानदार गजल.
बहुत ही शानदार....
बहना राजेश कुमारी जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
तीसरे शैर के ऊला में 'वो' की जगह "ये" कर लें तो उचित होगा ।
हार्दिक बधाई आदरणीय राजेश कुमारी जी।लाज़वाब गज़ल।
हैं मुखालिफ़ कुछ हवायें हो रही कमजोर छत
डगमगाती आपकी सरकार है कुछ कीजिये
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