मैं तृषित धरा ,
आकुल ह्रदया,
रचती हूँ ये पाती,
मेरे बदरा,
तुम खोए कहाँ,
मुझसे रूठे क्यों,
हे जल के थाती,
दूर-दूर तलक,
ना पाऊँ तुम्हें,
कब और कैसे,
मनाऊँ तुम्हें,
नित यही मैं ,
जुगत लगाती,
साँझ- सबेरे,
राह निहारे ,
मैं अनवरत ,
थकती जाती,
आओ जलधर,
जीवन लेकर,
बिखेरो सतरंग,
सब ओर मुझपर,
तड़ित चपला की,
शुभ्र चमक में,
श्रृंगारित हो,
सुसज्जित हो,
हरी चूनर मैं,
ओढ़ लजाऊँ,
जल-मोतीयों का,
पहन नवलखा,
जीवन के,
हर रंग सजाऊँ,
यह मन्नत मैं
सदा मनाती,
उमड़ो बदरा,
घिर आओ नभ में,
सूर्य रथ भेजो,
विश्राम गृह में,
गरजो घन-घन,
बरसो रिमझिम,
मनुहार करूँ,
बारम्बार करूँ,
मेरे आँगन,
करो आगमन,
इंद्रधनुषी ओढ़ा दो,
मुझे वसन,
तप्त-व्याकुल मैं ,
गुहार यही लगाती,
आ जाओ ,
जीवन संवाहक बन,
भर घटाओं में,
जल-सुमन,
देर ना करना,
शीघ्र बरसना,
पढ़ आस भरी यह पाती ...!!
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
"क्या बात है ..... बहुत खूब ... बधाई आप को " .सादर |
आदरणीया अर्पणा शर्मा जी, बरखा को मनाती मनुहार करती अच्छी रचना की प्रस्तुति। बधाई स्वीकार करें ।
जनाब मो.आरिफ जी - बेशक मानसून आ चुका । लेकिन अभी पर्याप्त बारिश नहीं हुई है। पूरे वर्ष भर के लिये नदी-तालाबों में पेयजल एकत्र नहीं हुआ है।
अधिकांश शहरों में बाढ़ के हालात तो पहली तेज बारिश के बाद से ही दिखने लगते हैं जो कि शहरों के अव्यवस्थित विकास और जल-निकासी व्यवस्था के अवरूद्ध या अनयोजित होने का नतीजा है।
मई-जून की प्रचंड़ गर्मी और सूखे को याद कीजिए । हमारे भोपाल का बड़ा तालाब भी अभी तक आधा भी नहीं भरा सो "धरा की ये मनुहार" उचित बैठती है।
शुक्रिया आपने कविता पसंद की।
आदरणीया अर्पणा शर्मा जी आदाब,
बदरा के बरसने की मान मनुहार करती बेहतरीन भावाभिव्यक्ति । मगर पूरे देश में बदरा मेहरबान होकर झमाझम बरस रहे हैं । बाढ़ से कहीं-कहीं हालात बेकाबू हैं । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीया जनाब समय कबीर जी, जनाब उस्मानी जी, नरेन्द्र जी एवं बीता- आप सभी के सह्रदय प्रोत्साहन का बहुत धन्यवाद
मुहतरमा अर्पणा शर्मा जी आदाब,बहुत सुंदर कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
बेहतरीन रचना द्वारा वरखा बहार को बयां करती पंक्तियाँ, बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीया अपर्णा दी।
बहुत सुंदर अलंकृत शब्द मोतियों से परिपूर्ण रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया अपर्णा शर्मा जी।
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