परछाईयाँ (२ क्षणिकाएं ) ....
1.
एक अंत
मृतिका पात्र में
कैद हो गया
जीवन के धुंधलके में
अर्थहीन परछाईयों का
पीछा करते करते
..............................
2.
बीते कल की
क्षत-विक्षत अभीप्सा का
शृंगार व्यर्थ है
अन्धकार को भेदो
सूरज वहीं कहीं मिलेगा
दुबका हुआ
नई अभीप्सा का
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार।
आदरणीय TEJ VEER SINGH जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार।
वाह आदरणीय सुन्दर क्षणिकाएं..बधाई
हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील सरना जी। बेहतरीन क्षणिकायें।
आदरणीय श्याम नारायण जी सृजन आपकी मधुर प्रशंसा का आभारी है।
आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब ... सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से शुक्रिया।
सुंदर भाव से संजोयी रचना पर बधाई स्वीकारें |
जनाब सुशील सरना जी आदाब,बहुत उम्दा क्षणिकाएँ हुई हैं,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीया babitagupta जी सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।
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