For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल नूर की - रफ़्ता रफ़्ता अपनी मंज़िल से जुदा होते गए

रफ़्ता रफ़्ता अपनी मंज़िल से जुदा होते गए,
राह भटके लोग जिनके रहनुमा होते गए.
.
तज़र्बे मिलते रहे कुछ ज़िन्दगी में बारहा
कुछ तो मंज़िल बन गए कुछ रास्ता होते गए.
.  
चुस्कियाँ ले ले के अक्सर मय हमें पीती रही  
वो नशा होती गयी हम पारसा होते गए.
.
उन चिराग़ों के लिए सूरज ने माँगी है दुआ
सुब्ह तक जलते रहे जो फिर हवा होते गए.
.
ज़िन्दगी की राहों पर जब धूप झुलसाने लगी
पल तुम्हारे साथ जो गुज़रे घटा होते गए.
.
फिर मुहब्बत के सफ़र में वो भी मंज़िल आ गयी
दर्द ही जब ख़ुद-ब-ख़ुद अपनी दवा होते गए.
.
पत्थरों के शह्र में सब लोग पत्थर ही के थे  
आईने को देख कर कुछ आईना होते गए.
.
“नूर” तुझ को छोड़ना होगा हमें मालूम था
फिर भी ऐ दुनिया! तुझी से आश्ना होते गए.
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 807

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on September 8, 2018 at 10:05am

शुक्रिया आ. लक्ष्मण जी

Comment by Nilesh Shevgaonkar on September 8, 2018 at 10:04am

शुक्रिया आ. बबीता जी

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 16, 2018 at 6:13am

आ. भाई नीलेश जी, बेहतरीन गजल हुयी है , हार्दिक बधाई।

Comment by babitagupta on August 15, 2018 at 4:38pm

बेहतरीन रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजियेगा ,आदरणीय सरजी।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on August 12, 2018 at 12:00pm

शुक्रिया आ. मोहम्मद आरिफ़ साहब 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on August 12, 2018 at 12:00pm

शुक्रिया आ. रवि जी 

Comment by Mohammed Arif on August 12, 2018 at 7:28am

आदरणीय नीलेश जी आदाब,

                        बहुत ही नायाब ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

Comment by Ravi Shukla on August 10, 2018 at 8:30pm

आदरणीय नीलेश जी अच्छी गजल के  लिए मुबारक बाद पेश है सच में फोन में तज्रिबा  लिखना बड़ा कठिन काम हो जाता है 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on August 10, 2018 at 8:00am

जी समर सर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on August 10, 2018 at 8:00am

धन्यवाद आ. नीलम जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

vibha rani shrivastava replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
""ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123विषय : जय/पराजय आषाढ़ का एक दिन “बुधौल लाने के…"
1 hour ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। हार्दिक स्वागत आपकी रचना का। प्रदत्त विषयांतर्गत बेहद भावपूर्ण और विचारोत्तेजक कथानक व कथ्य…"
2 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सादर प्रणाम, आदरणीय ।"
15 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सुन, ससुराल में किसी से दब के रहने की कोई ज़रूरत नहीं है। अरे भाई, हमने कोई फ्री में सादी थोड़ी की…"
15 hours ago
Nilesh Shevgaonkar shared their blog post on Facebook
20 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"स्वागतम"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र जी, हृदय से आभारी हूं आपकी भावना के प्रति। बस एक छोटा सा प्रयास भर है शेर के कुछ…"
yesterday
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"इस कठिन ज़मीन पर अच्छे अशआर निकाले सर आपने। मैं तो केवल चार शेर ही कह पाया हूँ अब तक। पर मश्क़ अच्छी…"
yesterday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र ji कृपया देखिएगा सादर  मिटेगा जुदाई का डर धीरे धीरे मुहब्बत का होगा असर धीरे…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"चेतन प्रकाश जी, हृदय से आभारी हूं।  साप्ताहिक हिंदुस्तान में कोई और तिलक राज कपूर रहे होंगे।…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"धन्यवाद आदरणीय धामी जी। इस शेर में एक अन्य संदेश भी छुपा हुआ पाएंगे सांसारिकता से बाहर निकलने…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय,  विद्यार्जन करते समय, "साप्ताहिक हिन्दुस्तान" नामक पत्रिका मैं आपकी कई ग़ज़ल…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service