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ग़ज़ल नूर की - मुझ को कहा था राह में रुकना नहीं कहीं

मुझ को कहा था राह में रुकना नहीं कहीं
सदियों को नाप कर भी मैं पहुँचा नहीं कहीं.
.
ज़ुल्फ़ें पलक दरख़्त सभी इक तिलिस्म हैं
इस रेग़ज़ार-ए-ज़ीस्त में साया नहीं कहीं.
.
तुम क्या गए तमाम नगर अजनबी हुआ
मुद्दत हुई है घर से मैं निकला नहीं कहीं.
.
अँधेर कैसा मच गया सूरज के राज में
जुगनू, चराग़ कोई सितारा नहीं कहीं.
.
खेतों को आस थी कि मिटा देगा तिश्नगी
गरजा फ़क़त जो अब्र वो बरसा नहीं कहीं.
.
ये और बात है कि अदू को चुना गया
गरचे वो मेरे सामने टिकता नहीं कहीं.
.
हमने भी “नूर” जंग लड़ी रात के ख़िलाफ़
पर सुब’ह अपने नाम का चर्चा नहीं कहीं.  
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित  

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 28, 2018 at 8:44am

शुक्रिया आ. महेंद्र जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 28, 2018 at 8:44am

शुक्रिया आ. बृजेश जी 

Comment by Mahendra Kumar on October 26, 2018 at 11:57am

बेहद उम्दा ग़ज़ल है आदरणीय निलेश सर। हर शेर ख़ूबसूरत। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 25, 2018 at 1:22pm

आदरणीय नीलेश जी बहुत ही खूब ग़ज़ल कही है...सादर

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 25, 2018 at 12:59pm

शुक्रिया आ. बलराम जी 

Comment by Balram Dhakar on October 24, 2018 at 10:58pm

आदरणीय नीलेश भाई बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें। बेहद खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने। शानदार।

सादर।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 24, 2018 at 1:35pm

शुक्रिया आ. अजय जी, लक्ष्मण जी.
शुक्रिया आ. समर सर 

Comment by Samar kabeer on October 24, 2018 at 11:40am

//लेकिन इस ग़ज़ल ने आपका 'वेट' और बढ़ा दिया है.//

सहमत हूँ जनाब अजय तिवारी जी से,इसे कहते हैं:-

'काम का काम है,अंगड़ाई की अंगड़ाई है'

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 24, 2018 at 9:20am

आ. भाई नीलेश जी, उम्दा गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Ajay Tiwari on October 24, 2018 at 7:54am

'वेट loss का टारगेट भी  पूरा हुआ'

लेकिन इस ग़ज़ल ने आपका 'वेट' और बढ़ा दिया है. 

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