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तेरे मेरे मुक्तक :मात्रा आधारित....

तेरे मेरे मुक्तक :मात्रा आधारित....

1.
ख़्वाब फिर महके हैं सावन की रात में।
जवाँ दिल बहके ..हैं सावन की रात में।
बारिश की बूंदों में .उल्फ़त की आतिश-
जज़्बात दहके हैं ..सावन ..की रात में।

2.
सालों साल उनकी खबर नहीं .आती ।
कभी ख़्वाबों में वो नज़र नहीं  आती ।
ऐसे   रूठे वो   कि . रूठ  गयी  साँसें -
दिल के शहर में अब सहर नहीं आती।

3.
खुशी के पर्दे  में  क्यूँ   नमी .बनी   रहती है।
हर जानिब इक गम की चादर तनी रहती है।
पैबंद   सी   लगती   है  हंसी  अब  होठों पर -
चश्मे साहिल पर गम की स्याही जमी रहती।

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by नाथ सोनांचली on August 30, 2018 at 1:06pm

आद0सुशील सरना जी सादर अभिवादन। मुक्तक का प्रयास बेहतर है, इसके लिए बधाई। पर अभी बहुत कुछ करना बाकी है।आद0 समर साहब की बातों पर गौर कीजयेगा और मुक्तक का कुछ और अध्ययन। बेहतर के लिए शुभकामनाएं

Comment by Samar kabeer on August 30, 2018 at 11:53am

जनाब सुशील सरना जी आदाब,मुक्तक का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

पहला मुक्तक 22 मात्रा

दूसरा  21 मात्रा

तीसरा 23 मात्रा ।

लेकिन मात्रा की गिन्ती पूरी होने से लय नहीं आ रही है,इस पर विचार करें ।

"सालों साल उनकी खबर नहीं .आती ।
कभी ख़्वाबों में वो नज़र नहीं  आती'

पहली पंक्ति में 'उनकी' को "उसकी" करना उचित होगा ।

बहतर होगा मंच पर मौजूद मुक्तक का अध्यन करें ।

Comment by narendrasinh chauhan on August 29, 2018 at 6:43pm
खुब सुन्दर रचनाए
Comment by Naveen Mani Tripathi on August 29, 2018 at 12:23pm

जी सुन्दर संशोधन

Comment by Sushil Sarna on August 28, 2018 at 9:04pm

आदरणीय Naveen Mani Tripathi जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा एवं सुझाव का दिल से शुक्रिया। ये संशोधन कैसा रहेगा : दिल जवाँ बहके ..हैं सावन की रात में.... या फिर आज दिल बहके हैं सावन की रात में।

Comment by Naveen Mani Tripathi on August 28, 2018 at 6:45pm

बहुत अच्छा मुक्त है । 

ख्वाब की मात्रा 21 है जबकि दूसरी पंक्ति जवाँ से प्रारम्भ कर रहे हैं जिसकी मात्रा 12 है । 

अगर 2 1 से दूसरी पंक्ति का आगाज हो तो गेयता बढ़ जायेगी ।

शुभ शुभ 

Comment by Sushil Sarna on August 28, 2018 at 6:05pm

आदरणीय  बसंत कुमार शर्मा जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है।

Comment by बसंत कुमार शर्मा on August 28, 2018 at 5:40pm

वाह बेहतरीन मुक्तक 

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