तेरे मेरे मुक्तक :मात्रा आधारित....
1.
ख़्वाब फिर महके हैं सावन की रात में।
जवाँ दिल बहके ..हैं सावन की रात में।
बारिश की बूंदों में .उल्फ़त की आतिश-
जज़्बात दहके हैं ..सावन ..की रात में।
2.
सालों साल उनकी खबर नहीं .आती ।
कभी ख़्वाबों में वो नज़र नहीं आती ।
ऐसे रूठे वो कि . रूठ गयी साँसें -
दिल के शहर में अब सहर नहीं आती।
3.
खुशी के पर्दे में क्यूँ नमी .बनी रहती है।
हर जानिब इक गम की चादर तनी रहती है।
पैबंद सी लगती है हंसी अब होठों पर -
चश्मे साहिल पर गम की स्याही जमी रहती।
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आद0सुशील सरना जी सादर अभिवादन। मुक्तक का प्रयास बेहतर है, इसके लिए बधाई। पर अभी बहुत कुछ करना बाकी है।आद0 समर साहब की बातों पर गौर कीजयेगा और मुक्तक का कुछ और अध्ययन। बेहतर के लिए शुभकामनाएं
जनाब सुशील सरना जी आदाब,मुक्तक का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
पहला मुक्तक 22 मात्रा
दूसरा 21 मात्रा
तीसरा 23 मात्रा ।
लेकिन मात्रा की गिन्ती पूरी होने से लय नहीं आ रही है,इस पर विचार करें ।
"सालों साल उनकी खबर नहीं .आती ।
कभी ख़्वाबों में वो नज़र नहीं आती'
पहली पंक्ति में 'उनकी' को "उसकी" करना उचित होगा ।
बहतर होगा मंच पर मौजूद मुक्तक का अध्यन करें ।
जी सुन्दर संशोधन
आदरणीय Naveen Mani Tripathi जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा एवं सुझाव का दिल से शुक्रिया। ये संशोधन कैसा रहेगा : दिल जवाँ बहके ..हैं सावन की रात में.... या फिर आज दिल बहके हैं सावन की रात में।
बहुत अच्छा मुक्त है ।
ख्वाब की मात्रा 21 है जबकि दूसरी पंक्ति जवाँ से प्रारम्भ कर रहे हैं जिसकी मात्रा 12 है ।
अगर 2 1 से दूसरी पंक्ति का आगाज हो तो गेयता बढ़ जायेगी ।
शुभ शुभ
आदरणीय बसंत कुमार शर्मा जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है।
वाह बेहतरीन मुक्तक
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