2122 1122 1122 22/ 122
वह्म को खोल के हमने तो वहम कर डाला
जीभ थी ऐंठती, इस दर्द को कम कर डाला
बाज़ लफ़्ज़ों के तलफ़्फ़ुज़ को हज़म कर डाला
नर्म जो थी न सदा उसको नरम कर डाला
क़ह्र की छुट्टी करी सीधे कहर को लाकर
टेढ़े अलफ़ाज़ पे हमने ये सितम कर डाला
क्योंकि लंबी थी बहुत रस्मो क़वायद पे बहस
ख़त्म होती नहीं ख़ुद, हमने ख़तम कर डाला
बंदा पंजाबी था कहने लगा सुन ऐ पुत्तर
नज़्म को खींच कर हमने तो नज़म कर डाला
अब तो हम राज़ हैं मर्दुम नहीं, बस इक दुम हैं
मर के मर्दुम से हर्फ़े 'मर' को क़लम कर डाला
~राज़ नवादवी
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
मर्दुम- मनुष्य, आदमी, सभ्य
Comment
अच्छी ग़ज़ल राज़ साहब मजाहिया के साथ तंज भी खूब है दिल से दाद हाज़िर है
आदरणीय तेज वीर सिंह साहब , ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का दिल से शुक्रिया, , सादर।
हार्दिक बधाई आदरणीय राज़ नवादवी जी।बेहतरीन गज़ल।
क्योंकि लंबी थी बहुत रस्मो क़वायद पे बहस
ख़त्म होती नहीं ख़ुद, हमने ख़तम कर डाला
जनाब क़मर जौनपुरी साहब, आदाब. ग़ज़ल में आपकी शिरकत और ज़र्रा नवाज़ी का तहे दिल से शुक्रिया. सादर
जनाब समर कबीर साहब, आपके रद्दे अमल और हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया. सादर
जनाब अनिस साहब, आपका हमेशा खैर मख्दम है.
बहुत ख़ुशनुमा ग़ज़ल हुई है। जनाब राज़ साहब मुबारकबाद कबूल करें।
जनाब राज़ साहिब आदाब,अब क्या कहूँ जब आपने 'ख़त्म को ख़तम कर डाला',बधाई इस प्रस्तुति पर ।
हा हा हा हा हा अच्छा जनाब मैं कुछ ज्यादा दिमाग खपा डाला था आपका बहुत बहुत शुक्रिया |
आदरणीय अनिस साहब, ज़र्रानवाज़ी का तहे दिल से शुक्रिया. ख़ुदा आपको इल्मो अदब की ऊँचाई तक ले जाए. ये ग़ज़ल अरूज़ और ज़ुबानी क़ायदे से जुड़ी बहस पे एक मज़ाहिया बयान है, कुछ ख़ास नहीं. मतले में ये कहा गया है कि अस्ल लफ्ज़ 'वह्म' के तलफ्फुज़ में जीभ ऐंठती है, इसलिए इसे सीधे सीधे 'वहम' बोल रहा हूँ. सादर
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online