For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल-बलराम धाकड़ (किसने सूरज यहाँ खंगाले हैं)

2122 1212 112/22
किसने सूरज यहाँ खंगाले हैं।
कितने मैले से ये उजाले हैं।
आज के दौर के ये अहल-ए-वतन,
बस दरकते हुए शिवाले हैं।
अब तो किस्सा तमाम ही कर दे,
ऐ हुक़ूमत! तेरे हवाले हैं।
सच तिजोरी में क़ैद रख्खा है,
झूठ ने मोरचे सँभाले हैं।
यूँ तो मुद्दे सभी पुराने थे,
उसने सिक्के नए उछाले हैं।
चैन, उम्मीद, अम्न और सपने,
ये सियासत के कुछ निवाले हैं।
अब क़यामत का शोर बरपेगा,
फिर से आँखों ने ख़्वाब पाले हैं।
~ बलराम धाकड़ ।
मौलिक/अप्रकाशित ।

Views: 940

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Balram Dhakar on February 8, 2019 at 4:37pm

आदरणीय लक्ष्मण जी, ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया। 

आदरणीय लक्ष्मण जी, भौतिक दृष्टि से, भले ही हमारे सौर मण्डल में एक ही तारा सूर्य विद्यमान है किंतु आकाशगंगा में अनेक तारों का अस्तित्व है। भाव पक्ष की दृष्टि से, रौशनी के स्रोत अर्थात समाज में नैतिकता के कर्णधारों को न जाने क्या हुआ है कि संप्रति नैतिकता और अन्य सत्प्रवृत्तियों का मैलापन दृष्टिगोचर हो रहा है।

सादर।

Comment by Balram Dhakar on February 8, 2019 at 4:29pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय अजय जी।

सादर।

Comment by राज़ नवादवी on January 19, 2019 at 12:18am

आदरणीय भाई बलराम धाकड़ साहब, आदाब. सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति पे दाद के साथ मुबारकबाद. सादर. 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 17, 2019 at 7:57pm

आ. भाई बलराम जी, सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई । 

पहले मिसरे में एक वचन सूरज के लिए प्रयुक्त बहुवचन क्रिया खाँगाले के विषय में संशय है । मेरी शंका का समाधान करने की कृपा करें ।

Comment by Ajay Tiwari on January 17, 2019 at 5:22pm

आदरणीय बलराम जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई.

Comment by Balram Dhakar on January 17, 2019 at 1:23pm

ग़ज़ल में आपकी शिरक़त और हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया, आदरणीय महेंद्र कुमार जी।

सादर।

Comment by Balram Dhakar on January 17, 2019 at 1:22pm

बहुत बहुत धन्यवाद आपका, आदरणीय सुरेंद्र नाथ जी।

सादर।

Comment by Mahendra Kumar on January 16, 2019 at 4:27pm

ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई है आदरणीय बलराम धाकड़ जी। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।

Comment by नाथ सोनांचली on January 16, 2019 at 6:26am

आद0 बकराम धाकड़ जी सादर अभिवादन। बढ़िया ग़ज़ल कही आपने, बधाई स्वीकार कीजिये

Comment by Asif zaidi on January 15, 2019 at 11:30pm

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"वाह। आप तो मुझसे प्रयोग की बात कह रहे थे न।‌ लेकिन आपने भी तो कितना बेहतरीन प्रयोग कर डाला…"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज जी।  नीलेश जी की बात से सहमत हूँ। उर्दू की लिपि…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. अजय जी "
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"मोर या कौवा --------------- बूढ़ा कौवा अपने पोते को समझा रहा था। "देखो बेटा, ये हमारे साथ पहले…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"जी आभार। निरंतर विमर्श गुणवत्ता वृद्धि करते हैं। अपनी एक ग़ज़ल का मतला पेश करता हूँ। पूरी ग़ज़ल भी कभी…"
Saturday
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"क़रीना पर आपके शेर से संतुष्ट हूँ. महीना वाला शेर अब बेहतर हुआ है .बहुत बहुत बधाई "
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"हार्दिक स्वागत आपका गोष्ठी और रचना पटल पर उपस्थिति हेतु।  अपनी प्रतिक्रिया और राय से मुझे…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"आप की प्रयोगधर्मिता प्रशंसनीय है आदरणीय उस्मानी जी। लघुकथा के क्षेत्र में निरन्तर आप नवीन प्रयोग कर…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"अच्छी ग़ज़ल हुई है नीलेश जी। बधाई स्वीकार करें।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"मौसम का क्या मिज़ाज रहेगा पता नहीं  इस डर में जाये साल-महीना किसान ka अपनी राय दीजिएगा और…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service