आँज गगन का नील निगाहें
लगती गहरी झील निगाहें
माँस बदन पर दिख जाये तो
बन जाती है चील निगाहें
आन टिकी है मुझ पर सबकी
चुभती पैनी कील निगाहें
बंद गली के उस नुक्कड़ पर
करती है क्या डील निगाहें
इक पल में तय कर लेती है
यार हज़ारों मील निगाहें
बाँध सकेगा मन क्या इनको
देती मन को ढील निगाहें
दिखने दे ‘खुरशीद’ नज़ारे
किरणों से मत छील निगाहें
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय महर्षि त्रिपाठी जी ,आदरणीय सोमेश जी ,हृदय तल से आभार |सादर |
आदरणीय खुर्शीद खैरादी जी ,बहुत सुन्दर ,
बंद गली के उस नुक्कड़ पर
करती है क्या डील निगाहें//...वाह, बधाई, सादर।
आदरणीय खुर्शीद सर बेहतरीन ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाए. सभी अशआर एक से बढ़कर एक है .... क्या कमाल का काफिया लिया है, आपकी ग़ज़लों का इसीलिए दीवाना हूँ.... ...... आपकी ग़ज़ल पर ही तरही ग़ज़ल का प्रयास कर रहा हूँ आपकी ग़ज़ल के हवाले से ये चंद अशआर आपको सादर समर्पित है -
क्या क्या करती फील निगाहें
गीली गीली सील निगाहें
तेरी बातें, मेरी बातें
करती है तफसील निगाहें
खुशियाँ खुशियाँ केवल खुशियाँ
कितनी है तहवील निगाहें
मेरी बातें सुनकर ऐसे
मत करिए तब्दील निगाहें
इस दिल से उस दिल तक बातें
करती है तामील निगाहें
कोमल दिल को रोज डराती
"चुभती पैनी कील निगाहें"
बहुत सुन्दर वाह्ह्ह निगाहों के हर हुनर को गीतिका में बांधा है बहुत अच्छी लिखी है बहुत बहुत बधाई ,बहुत पहले मैंने आँखों के ऊपर इसी तरह कुछ लिखा था बरबस ही याद आ गया.
निगाहों ने निगाहों से
ईशारों ही इशारों में
बयाँ कर दी सभी बातें
ओठों पे थी पाबंदी
निगाहों ने हद तोड़ी
टूटी थी जो कड़ियाँ
निगाहों ने फिर जोड़ी |
निगाहों में सजा सपना
असम्भव कुछ नहीं छोड़ा
नयन सारथी पे बैठ
,मन दूर तक दौड़ा |
एक सहज सी प्रतिक्रिया आपकी निगाहों के नाम |सुंदर गीतिका पर बधाई |
अच्छी रचना आ. खुर्सीद जी |
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