हाइकु...
१..
बचपन में
सहारा लगता है
पचपन में
. ----
२.
अदालत है
देखो फंस ना जाना
पुलिस-थाना..
-----
३.
साँझ ने घेरा
गहरा है अँधेरा
कहाँ सबेरा...
४.
अदावत में
बच नहीं पावोगे
अदालत में .
५.
यह तस्वीर
हैं रंग कैसे- कैसे
ये तकदीर ..
६..
धर्म अपना
ईमान भी अपना
कर्म अपना.
७..
कर्ज में डूबे
बढ़े बचाने हाँथ
फ़र्ज़ में डूबे.
८.
देश हमारा.
कराहता हुआ ये
दंश का मारा.
९ .प्यास अधूरी
जल बिन मछली
है मजबूरी.
१०.
सरकार है
कैसे ये चल सके
सर! कार है.
.
------------ अविनाश बागडे...
Comment
अविनाश जी, नमस्कार,
अविनाश जी बहुत सुंदर हाइकु लिखे हैं आपने....सम्पूर्ण, साहित्यिक दिल कू छू जाने वाली रचनाये ! बधाई स्वीकार करें !!
rajesh kumari ..आप सभी
MAHIMA SHREE ...सुधि-जनों
AjAy Kumar Bohat .. का
SANDEEP KUMAR PATEL ...ह्रदय से
SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR ..आभार......
धर्म अपना
ईमान भी अपना
कर्म अपना.
७..
कर्ज में डूबे
बढ़े बचाने हाँथ
फ़र्ज़ में डूबे.
८.
देश हमारा.
कराहता हुआ ये
दंश का मारा.
अविनाश जी ..सुन्दर हाइकु ..गहन भाव लिए हुए --भ्रमर ५
कर्ज में डूबे
बढ़े बचाने हाँथ
फ़र्ज़ में डूबे. waah kya baat hai sir ji
Sabhi ek se badh kar ek hain, kya hi gazab likhte hai aap...
कर्ज में डूबे
बढ़े बचाने हाँथ
फ़र्ज़ में डूबे.....वाह अविनाश जी सभी हाइकु तंदरुस्त हैं डाईट अच्छी मिली है इस हाइकु के तो क्या कहने
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