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ग़ज़ल : उसके लब पे रहती है  मुस्कान सदा - सलीम रज़ा रीवा

22 22 22 22 22 2
.....
जो बनकर के जीता है  इंसान सदा,
उसके लब पे रहती है  मुस्कान सदा
..
क्या अफसोस कि शाख़ से पत्ते टूटे हैं,
गुलशन में तो आते हैं तूफ़ान सदा
..
हक़ पे चलने वाले हक़ पे चलते हैं,
माना  की बहकाता है शैतान सदा 
..
धीरे - धीरे शेर मेरे भी चमके गें,
पढ़ता हूँ मै ग़ालिब का दीवान सदा
..
रिज़्क मे उसके बरकत हरदम होती है,
जिसके घर में आते हैं मेहमान सदा
..
भेद भाव से दूर "रज़ा" जो रहता है,
महफ़िल में वो पाता है  सम्मान सदा
..
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 6, 2017 at 3:19pm
बहुतखूब बहुतखूब आदरणीय सलीम साहब..शेर दर शेर दाद क़बूल करें...
Comment by Samar kabeer on October 6, 2017 at 2:52pm
जनाब सलीम रज़ा साहिब आदाब,आपकी ख़ुश नसीबी है कि आपकी ग़ज़ल पर इतने विद्वानों की टिप्पणी मिली ।
अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Ashok Kumar Raktale on June 6, 2013 at 8:30am

वाह! आदरणीय सलीम रजा साहब सादर, बहुत सुन्दर गजल कही है हर शेर दाद के काबिल. दिली दाद कुबूल फरमाएं.

Comment by वीनस केसरी on June 4, 2013 at 9:05pm

बहुत खूब सलीम साहब अच्छी ग़ज़ल हुई है 
ढेरों मुबारकबाद 

जो माने है  रब का हर फ़रमान बराबर !!

उसके लब पे रहती है मुस्कान बराबर !!

होते हैं सब दुनिया के इन्सान बराबर !

मिलती है लोगों में कहाँ पहचान बराबर!!

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on May 30, 2013 at 8:44pm

बेहतरीन गज़ल के लिए बधाई...........

धीरे - धीरे शेर मेरे भी चमके गें  !

पढ़ता हूँ मै ग़ालिब का दीवान बराबर !!

वाह भई वाह...........

Comment by विजय मिश्र on May 30, 2013 at 2:01pm
सलीम भाई ,बहुत सही कही और बहुत खूब कही .--- भेद-भाव से दूर-दूर जो रहता है , दुनियाँ में वो पाता है सम्मान बराबर .

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 30, 2013 at 1:53pm

धीरे - धीरे शेर मेरे भी चमके गें  !

पढ़ता हूँ मै ग़ालिब का दीवान बराबर !!.. . वाह ..:-))))

 

मिसरों का वज़्न क्या हुआ, आदरणीय, इसे स्पष्ट करना था.

Comment by SALIM RAZA REWA on May 29, 2013 at 10:39pm

ram siroman ji coontee mukeeji ji  gazal pasand aai sukriya

Comment by ram shiromani pathak on May 29, 2013 at 6:48pm

बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें सलीम जी /////////

Comment by coontee mukerji on May 29, 2013 at 2:39pm

सलीम जी  , एक एक  गज़ल आपकी  कबिले तारीफ़ है ./सादर / कुंती .

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