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"एक स्वप्न भूशायी होता,कितने उगते आते हैं;
मिट्टी में आस नहीं मिलती,प्राण मगर मिल जाते हैं।..
"आदरणीय..रवि प्रकाश जी,.. सरल,सहज, सुंदर व् भावनात्मक रचना पर बधाई !!
सागर होना बहुत सरल है,नदिया बन गाना मुश्किल;
शिखरों सा उठना संभव है,गल कर बह जाना मुश्किल।
ढेरों बधाई आपको इस सुंदर रचना पर, सादर
आदरणीय रवि प्रकाश जी वाह क्या कहने पंक्ति दर पंक्ति भाव से ओतप्रोत हैं बहुत ही सहजता एवं सुन्दरता से आपने इस रचना का निर्माण किया है, मुझे कहीं कहीं प्रवाह भंग लगा. बहरहाल इस सुन्दर रचना पर ढेरों बधाई स्वीकारें.
सुन्दर रचना के लिए बधाई, आदरणीय।
सादर,
विजय निकोर
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए
आ0 रवि प्रकाश भाई जी, सुन्दर रचना। हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,
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