दोनों बुराई के लिये लड़ रहे थे, एक दूसरे पर खूब कीचड़ उछाल रहे थे ।
देखने वालों ने समझा दोनों बुराई मिटा के रहेंगे ,
जब कि वो दोनों बुराई पर अपना अपना हक़ जता रहे थे।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
कम शब्दों की उम्दा लघुकथा हेतु आपको हार्दिक बधाई आ. Dr. Vijai Shanker जी |
आदरणीय विजय शंकरजी, आपकी अनुभवपगी परख इतनी गहरी हुआ करती है कि आपकी कई टिप्पणियाँ बारम्बार पठनीय हो जाती है.
इस लघुकथा के माध्यम से जिस तथ्य का निर्वहन हुआ है वह प्रासंगिक व्यंग्य का अत्युत्तम उदाहरण है. संप्रेषणीयता को अवश्य तनिक और सार्थक सुगढ़ आयाम दिया जा सकता है. परन्तु यह भी सत्य है कि इस लघुकथा को ससम्मान उद्धृत किया जा सकता है.
इस प्रस्तुति हेतु हृदय से बधाइयाँ और शुभकामनाएँ आदरणीय.
कम शब्दों में बहुत बढ़िया कटाक्ष आ० विजय शंकर जी दिल से बधाई आपको
बहुत उम्दा रचना , जैसे अहिंसा के विचार लिए हिंसा करना , वैसे ही ये लड़ाई | बधाई आदरणीय.
सुंदर व्यंग्य की इस सुंदर लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय।
इस लघुकथा के माध्यम से आपने सही व्यंग्य किया है बहुत बहुत बधाई आपको इस रचना के लिये
बहुत ही बढ़िया व्यंग्य हुआ है आदरणीय विजय शंकर सर, आपकी सूक्ष्म वैचारिकता का सधे हुए ढंग से शाब्दिक किया जाना मुग्ध कर गया. और इस पर शीर्षक का चयन तो कमाल है. बहुत गहराई से विचार उपरान्त यह रचना हुई है .... इस बहुत सुन्दर प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई
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