For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक कप चाय (लघुकथा)

"यार एक कप चाय मिल जाती तो मजा आ जाता I"  
पतिदेव का हुक्म सुन घर की साफ़ सफाई करके थकी हारी पत्नी रसोईघर की तरफ मुड़ गयी.
साहब सोफे पर बैठ कर टीवी ऑन कर मजे से चैनल बदलते हुए कह रहे थे:
"आज तो यार बहुत थक गए, दीपावली पर बाज़ार जाना, उफ्फ्फ्फ़ ...."
पति की हां में हां मिलाते हुए पत्नी चाय देकर वापिस मुड़ गई और अपने काम में लग गयी !

"मौलिक व अप्रकाशित"

आलोक

मथुरा

Views: 693

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Alok Mittal on November 3, 2014 at 10:56am

आदरणीय Shubhranshu Pandey जी...बहुत बहुत आभार आपका

Comment by Alok Mittal on November 3, 2014 at 10:55am

आदरणीय योगराज प्रभाकर भाई जी .....बहुत बहुत शुक्रिया ..आपका आशीर्वाद मिलता रहे इसी तरह ...


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 3, 2014 at 10:46am

अपनी अपनी थकावट को सुंदरता से शब्द दिए हैं, सच है कि सब कुछ करने के बावजूद भी पत्नी की थकावट सेकेंडरी ही मानी जाती है।  इस सुंदर अभिव्यक्ति हेतु हार्दिक बधाई प्रेषित है।

Comment by Shubhranshu Pandey on November 2, 2014 at 8:05pm

आदरणीय आलोक जी,

हिन्दुस्तान में रहने का ये भी एक पहलु है. जहां महिलाओं के काम को ना तो समझा जाता है और ना ही उसका नाम होता है. विदेशों में घर के काम को भी देश के GDP में जोड़ दिया जाता है. एक बार फ़िर से कथा के लिये बधाई..

सादर.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 31, 2014 at 7:11pm

बढ़िया लघुकथा, हार्दिक बधाई स्वीकारें आ0 आलोक मित्तल जी.

Comment by Alok Mittal on October 31, 2014 at 4:08pm

आदरणीय Saurabh Pandey भाई जी.....हम तो कभी नहीं आये...पर आपको रचना पसंद आई इसका आभार ..अगर ईश्वर ने चाह तो आ भी जायेंगे


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 31, 2014 at 12:21am

ए भाई, आप मेरे घर कब आये थे.. ?!!

Comment by Alok Mittal on October 28, 2014 at 10:09am

आदरणीय rajesh kumari जी....हौसला बढाने के लिए दिल से आभार आपका

बात बिलकुल सही है ...थोडा हम समझे थोडा तुम समझो तो जिंदगी की गाड़ी चल निकले ...

Comment by Alok Mittal on October 28, 2014 at 10:08am

आदरनीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी.....हौसला बढाने के लिए शुक्रिया आपका 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 28, 2014 at 9:40am

इस अति की सीमा पार हो गई तभी तो  महिलाओं ने बीड़ा उठाया आज इससे उलट सीन भी देखने को मिल रहे हैं यदि दोनों एक दूसरे की परेशानी दिल से समझे तो परिवार में खुशहाली रहे ,बढ़िया लघु कथा ,बधाई आपको. 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service