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ताटंक छन्द- उरी हमले के संदर्भ में

नापाक इरादों को लेकर, श्वान घुसे फिर घाटी में।

रक्त लगा घुलने फिर देखो, केसर वाली माटी में ।।

सूनी फिर से कोख हुई है, माँ ने शावक खोये हैं।

चीख रही हैं बहिनें फिर से, बच्चे फिर से रोये हैं।१।

सिसक रही है पूरी घाटी, दिल्ली में मंथन जारी।

प्रत्युत्तर में निंदा देते, क्यूँ है इतनी लाचारी।।

अंदर से हम मरे हुए हैं, पर बाहर से जिन्दा हैं।

माफ़ करो हे भारत पुत्रों, आज बहुत शर्मिंदा हैं।२।

वो नापाक नहीं सुधरेंगे, कब ये दिल्ली मानेगी।

आर-पार का अंतिम निर्णय, कब ये दिल्ली ठानेगी।।

दिल काला है खूं है काला, कब कालों को जानेगी।

कुत्ते की दुम टेढ़ी रहती, सच ये कब पहचानेगी।३।

अबकी प्रश्न नहीं हैं उनसे, पूछ रहा हूं दिल्ली से।

कब तक शावक ही हारेंगे, कायर कुत्सित बिल्ली से।।

कैसे मोल चुकाओगे तुम, इन सत्रह बलिदानों का।

जंग लग रही तलवारों में, मुँह खोलो अब म्यानों का।४।

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by डॉ पवन मिश्र on September 25, 2016 at 7:27am

हमारे तात्कालिक प्रयास पर लिखे छन्दों को मान देने के लिए आप सबका हृदय तल से आभार। 

Comment by Ashok Kumar Raktale on September 22, 2016 at 10:02pm

वाह ! वाह ! सुंदर रचनाएं हुई हैं आदरणीय डॉ. पवन कुमार मिश्र जी उरी में हुई घटना पर उत्तम प्रस्तुति. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें.सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 21, 2016 at 2:35pm

अच्छी रचना हुई है

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on September 20, 2016 at 12:48pm
आदरणीय पवन जी सुन्दर एवं भावप्रद समयानुकूल रचना के लिए हार्दिक बधाई । सादर ।
Comment by Ravi Shukla on September 19, 2016 at 10:09pm
आदरणीय पवन जी ओज पूर्ण प्रस्तुति हुई है शहीदों को श्रद्धांजलि के लिए आपका आभार ।
अच्छे ताटंक लिखे आपने बधाई ।
Comment by Ram Ashery on September 19, 2016 at 9:25pm

अति सुंदर एवं सजीव चित्रण प्रस्तुत किया है आपको बहुत बहुत बधाई हो 

Comment by Samar kabeer on September 19, 2016 at 5:37pm
जनाब डॉ.पवन मिश्र जी आदाब,बहुत बढ़िया छन्द हुए हैं,दिल से बधाई स्वीकार करें ।

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