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ग़ज़ल-लालफीताशाही-बृजेश कुमार 'ब्रज'

मंच को प्रणाम करते हुए ग़ज़ल की कोशिश

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फाइलुन

लालफीताशाही कितनी मिन्नतों को खा गई
ये व्यवस्था  ढेर  सारे  मरहलों  को खा गई

ये  कहा था  साहिबों  ने घर नये  देंगे  बना
साब की दरियादिली भी झोपड़ों को खा गई

अब तरक़्क़ी की बयारें इस क़दर काबिज़ हुईं
पेड़ तो काटे  जड़ों से कोपलों  को खा गई

कुछ गवाही दे रही है मयक़दे की रहगुज़र
मयकशी हँसते हुये कितने घरों को खा गई

भूख  से बेहाल थे  वो  कुछ नहीं सूझा  उन्हें
पेट की 'ब्रज' आग पहले हौसलों को खा गई

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

बृजेश कुमार 'ब्रज'

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 4, 2019 at 9:22pm

ग़ज़ल पसंदगी के लिए आभार आदरणीय विजय जी..

Comment by vijay nikore on October 1, 2019 at 3:33pm

अच्छी गज़ल कही है। हार्दिक बधाई, मित्र बृजेश जी।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 28, 2019 at 6:14pm

आदरणीय दण्डपाणि जी ग़ज़ल पे आपकी उपस्थित और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार..

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 24, 2019 at 11:18am

देर के लिए माफ़ी चाहता हूँ आदरणीय समर जी दरअसल हमारे यहाँ नेट की स्थिति आजकल काफी दयनीय है।ग़ज़ल पे आपकी अमूल्य राय के लिए शुक्रिया...आपकी सलहनुसार बदलाव किया जा सकता है लेकिन क्या 'साब' शब्द से दिक्कत है?या कुछ और ही कारण है?सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 24, 2019 at 11:13am

ग़ज़ल पे आपकी उपस्थित के लिए आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी..

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 24, 2019 at 11:12am

हार्दिक आभार सतविंद्र जी

Comment by Samar kabeer on September 23, 2019 at 2:31pm

जनाब बृजेश कुमार 'ब्रज' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'साब की दरियादिली भी झोपड़ों को खा गई'

इस मिसरे को यूँ कहना उचित होगा:-

'उनकी ये दरियादिली सब झोपड़ों को खा गई'

Comment by TEJ VEER SINGH on September 20, 2019 at 7:56pm

हार्दिक बधाई आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' जी। बेहतरीन गज़ल।

ये  कहा था  साहिबों  ने घर नये  देंगे  बना
साब की दरियादिली भी झोपड़ों को खा गई

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on September 20, 2019 at 1:59pm

उत्तम अति उत्तम!

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