परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 118वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब बशीर बद्र साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|
"ये नए मिज़ाज का शहर है ज़रा फ़ासले से मिला करो "
11212 11212 11212 11212
मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन
(बह्र: कामिल मुसम्मन सलीम )
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 24 अप्रैल दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 25 अप्रैल दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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जनाब भाई लक्ष्मण धामी साहिब, ग़ज़ल पसंद करने और आपकी हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया
जनाब तसदीक़ अहमद साहब खूबसूरत गजल के लिए दाद कबूल करें, गिरह का शेर मुझे बहुत पसंद आया|
करो जब भी ग़ैर से गुफ्तगू यूँ ही बे वजह न हँसा करो l
जो मुसलमां हिन्दू वतन में हैं वो हैं भाई भाई ऐ रहनुमा l.......ये दो मिसरे बेबहर हो रहे हैं नजरेसानी कर लें|
ढेर सारी मुबारकबाद|
जनाब राणा साहिब, गज़ल पसन्द करने और आपकी इस हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रियाl दोनों मिसरे बह्र में हैं, तकती नीचे देखियेगा
(करो जब भी ग़ै र से गुफ़्तगू यूँ ही बे वजह न हँसा करो)
( 11 2. 1 2 1 1 2 1 2. 1 1 2 1 2 1 1 2 1 2)
जो मुसलमां हिन् दू वतन में हैं वो हैं भाई भाई ए रहनुमा)
(1. 1 2 1. 2 1. 1 2 1 2 1 1 2 1 2 1 1 2 1 2)
आदरणीय गणवीर जी अच्छी ग़ज़ल हुई बहुत-बहुत बधाइयां।
कृपया इस की तख्तीह दोबारा कर ले।
ना किसी से कोई सलाह लो , यहाँ मुफ्त मिलते हैं मशविरे।
बाकी गुणी जन बताएंगे
आप ने बहुत खूब सूरत ग़ज़ल कही है
आप को बहुत बहुत बधाई
आदरणीय गणवीर जी मेरी सलाह पर विचार करने के लिए शुक्रिया। मैं भी आपकी तरह विद्यार्थी हूं OBO का, आप सही हैं।
बिलकुल सहीह तक्तीअ
आ. भाई सालिक जी, अच्छी गजल हुई है , बंद की खूबसूरत हुआ है । हार्दिक बधाई ।
एक बात और , विद्व जनो के अनुसार गजल में ना का प्रयोग वर्जित माना गया है । अतः इसे 'न' लिखना उचित होगा । सादर
जी ,आपका यह सुझाव मैं गांठ बांध कर रख लेता हूँ. बहुत शुक्रिया, नवाज़िशें.
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