आदरणीय साथियो,
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सादर नमस्कार। रचना पटल पर समय देकर प्रथम प्रतिक्रिया व राय/मार्गदर्शन हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीया कल्पना भट्ट जी। राय से तो मार्गदर्शन मिलता है, लेखक बुरा क्यों मानेंगे। पात्रों के नाम के साथ भी रचना लिखी जा सकती है।
हार्दिक बधाई आदरणीय शेख़ शहज़ाद जी। सुन्दर प्रयास।
हार्दिक धन्यवाद जनाब तेजवीर सिंह साहिब।
सच्चा चिकित्सक - लघुकथा -
रात के दो बजे लच्छू की घर वाली को प्रसव पीड़ा शुरू हो गई। लच्छू एक कस्बे में बेलदारी का काम करता था। उस कस्बे में डाक्टर तो कई थे मगर वे सब शहर में रहते थे।सुबह नौ दस बजे आते थे और शाम होते ही शहर चले जाते थे। रात के समय चिकित्सा सुविधा न के बराबर थी।केवल दवा मिल सकती थी। चिकित्सक परामर्श सुविधा लगभग शून्य थी।
लच्छू और उसकी घरवाली के साथ कोई अन्य पारिवारिक सदस्य भी नहीं था।
बड़ी जटिल समस्या खड़ी हो गई थी उसके समक्ष, करे तो क्या करे।शहर जाने के लिये भी इस वक्त कोई साधन नहीं मिलने वाला था।
अपनी झोपड़ी के बाहर निकल कर देखा, चारों तरफ़ सन्नाटा था। कभी कभी कुत्तों के भोंकने की आवाज़ सुनाई पड़ती थी।
लच्छू अनमना सा खड़ा ईश्वर से मदद की गुहार लगा रहा था। तभी उसके अंतर्मन में एक बिजली सी कोंधी। उसे याद आया कि कुछ दिन पहले कस्बे में उसने एक डाक्टर साहब के घर मिस्त्री रामदीन के साथ कुछ मरम्मत का काम किया था। वे रात को भी कस्बे में ही रहते हैं।
वह सरपट दौड़ पड़ा। कुछ पल में वह डाक्टर गौतम के दरवाजे पर था। थोड़ी देर के सोच विचार के बाद उसने दरवाजे पर दस्तक दे डाली।लेकिन किसी तरह की हलचल नहीं । थोड़े अंतराल के बाद उसने पुनः दस्तक दी।
इस बार डाक्टर साहब ने द्वार खोला,"अरे लच्छू तुम, इतनी रात गये। क्या कोई गम्भीर समस्या है?"
"जी डाक्टर साहब, समस्या है तभी तो इतनी रात में आपको कष्ट दिया।”
"बोलो क्या परेशानी है?”
"साहब हमारी घरवाली को नवाँ महीना चल रहा है। उसको दर्द शुरू हो गये हैं। अब केवल आपका ही आसरा है।”
"अरे भाई, हम वैसे वाले डाक्टर नहीं हैं।हम तो केवल...."
लच्छू ने पूरा वाक्य भी नहीं सुना। वह सीधा डाक्टर साहब के पैरों में गिर पड़ा। वह डाक्टर साहब की कोई बात सुनने को तैयार ही नहीं था।
बस एक ही रट लगा रखी थी कि ,"आपको हमारे साथ चलना ही होगा।"
अंत में डाक्टर साहब को उसकी बात माननी ही पड़ी। डाक्टर साहब को ज्ञात था कि इसके घर कोई अन्य स्त्री नहीं है, अतः वे अपने साथ अपनी पत्नी को भी ले गये।
डाक्टर साहब और उनकी पत्नी द्वारा कड़ी मेहनत के बाद शिशु का जन्म हो गया।
लच्छू को कुछ आवश्यक हिदायतें देकर डाक्टर साहब चलने लगे।
लच्छू अपने गमछे की झोली बनाकर कुछ रुपये और सिक्के लेकर आया,"साहब अभी तो इतना ही है। पर बाद में हम आपका पूरा फ़ीस चुका देंगे।”
"नहीं लच्छू मैं ये रुपये नहीं ले सकता क्योंकि ये मेरा काम नहीं है। मैं तो केवल पशु चिकित्सक हूँ।”
"आप जो भी हैं साहब मेरे लिये तो आप भगवान हो। यह भगवान के चरणों में प्रसाद समझ कर ही रख लो।"
मौलिक एवं अप्रकाशित
आदाब। विषयांतर्गत बढ़िया प्रेरक रचना क्षेत्रीय पृष्ठभूमि पर। हार्दिक बधाई जनाब तेजवीर सिंह साहिब।
हार्दिक आभार आदरणीय शेख़ शहज़ाद जी।
नमस्ते आदरणीय तेजवीर सिंह जी| अंचल परिवेश पर एक अच्छी विषयानुरूप लघुकथा की प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकारें| वर्तमान समय में भी गाँवों में कई जगहों पर डोक्टरों का न होना बहुत सारे प्रश्न खड़े करता है|
हार्दिक आभार आदरणीय Kalpana Bhatt "रौनक़" जी।
सादर नमस्कार। विषयांतर्गत गंभीर समस्याओं और विसंगतियों पर बढ़िया प्रेरक रचना। हार्दिक बधाई आदरणीया विभारानी श्रीवास्तव जी।
हमारे बहुत से साथी तकनीकी जानकारी के अभाव या तकनीकीसमस्याओं के कारण यहाँ तैयार रचना पोस्ट नहीं कर पाते हैं। सोशल मीडिया पर प्राप्त कुछ संदेशों से ऐसा लगा। मुझे भी विज्ञापनों वाले संदेहास्पद से पॉपअप नोटिफिकेशन आदि बहुत परेशान कर रहे हैं। मोबाइल की सेटिंग्स चैक की, किंतु समाधान न हुआ।
फ़िर भी चिकित्सा जगत से जुड़ी रचनाओं की बढ़िया सहभागिता रही। सभी साथियों को हार्दिक बधाई।
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