परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 153 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है |
इस बार का मिसरा जनाब 'दाग़' दहलवी साहिब की ग़ज़ल से लिया गया है |
'आप के मिलने का होगा जिसे अरमाँ होगा'
फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन/फ़इलुन
2122 1122 1122 22/112
बह्र-ए-रमल मुसम्मन सालिम मख़बून महज़ूफ़
रदीफ़ --होगा
क़ाफ़िया:-(आँ का)
अहसाँ,महमाँ,आसाँ, दरमाँ, परेशाँ आदि
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन होगी | मुशायरे की शुरुआत दिनांक 24 मार्च दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 25 मार्च दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
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मंच संचालक
जनाब समर कबीर
(वरिष्ठ सदस्य)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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जनाब महेन्द्र कुमार जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास हुआ है लेकिन ग़ज़ल अभी समय चाहती है ।
बहुत-बहुत शुक्रिया सर। अगली बार पूरा प्रयास रहेगा कि निराश न करूँ। सादर।
आ. भाई महेंद्र जी, सादर अभिवादन। गजल के लिए हार्दिक बधाई। सुधीजनों की बात का संज्ञान लें। सादर..
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, बहुत-बहुत शुक्रिया। संज्ञान ले लिया गया है। सादर।
भाई महेंद्र जी, गजल के लिए हार्दिक बधाई।
बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय अजय जी। सादर।
2122 1122 1122 22/112
हर सफ़र ज़िंदगी का देखना आसाँ होगा
तुमने गर ठान लिया जी में तो फिर हाँ, होगा (1)
ला-दवा हो चला है इश्क़ का ये रोग मियाँ
अब दवा से कहाँ इस चीज़ का दरमाँ होगा (2)
मेरे दिल को मेरे हमदम अभी गिर्या से न रोक
तेरी दहलीज़ से लिपटा है, परेशाँ होगा (3)
ज़िंदगी दोस्तों के साथ ही होगी गुलज़ार
गुल नहीं होगें तो क्या जश्न-ए-बहाराँ होगा (4)
आ रही है किसी फ़रियाद में बेड़ी की खनक
पा-ब-जौलाँ कोई आशिक़ सर-ए-ज़िन्दाँ होगा (5)
आप तो बस चुके हैं रूह में आकर मेरी
आपको भूलना इतना भी न आसाँ होगा (6)
'ज़ैफ़' महफ़िल में नहीं बोला किसी से अबतक
देखना कोने में बैठा है, पशेमाँ होगा (7)
****
गिरह:-
बे-वफ़ाओं से कोई राब्ता रखता नहीं मैं
'आपके मिलने का होगा जिसे अरमाँ होगा'
(मौलिक/अप्रकाशित)
आदरणीय जैफ साहब बहुत ख़ूब ग़ज़ल कही आपने .गिरह ख़ूब है
आदरणीय Zaif जी आदाब
तरही मिसरे पर ग़ज़ल के उम्दा प्रयास पर बधाई स्वीकार करें ।
हर सफ़र ज़िंदगी का देखना आसाँ होगा
तुमने गर ठान लिया जी में तो फिर हाँ, होगा (1)
( *जी* की जगह *मन* या *दिल* शब्द के प्रयोग पर विचार करें )
सुझाव - तुम अगर मान लो ये मन से/में तो फिर हाँ होगा
ला-दवा हो चला है इश्क़ का ये रोग मियाँ
अब दवा से कहाँ इस चीज़ का दरमाँ होगा (2)
( चीज़ की जगह रोग़, बीमारी या मरज़ का प्रयोग किया जाए तो बहतर)
सुझाव -
ला-दवा हो चला है इश्क़ का यारो ये मरज़
अब दवा से कहाँ इस रोग का दरमाँ होगा
गिरह अच्छी है
// सादर//
आ. अमित जी, बहुत आभार। सुझाव के लिए बहुत शुक्रिय:।
आदरणीय zaif जी नमस्कार
बहुत ख़ूबब हुई ग़ज़ल बधाई स्वीकार कीजिये गिरह बहुत ख़ूब, सुझाव अच्छे आये हैं
सादर
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
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