परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 158 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है |
इस बार का मिसरा जनाब डॉ. बशीर बद्र साहिब की ग़ज़ल से लिया गया है |
'ज़बाँ सब समझते हैं जज़्बात की'
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़अल
122 122 122 12
बह्र-ए-मुतक़ारिब मुसम्मन सालिम महज़ूफ़
रदीफ़ :- की
क़ाफ़िया:-(आत की तुक)
हालात, रात, बात, ख़ैरात, सौग़ात आदि...
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन होगी । मुशायरे की शुरुआत दिनांक 25 अगस्त दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 26 अगस्त दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 25 अगस्त दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.
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मंच संचालक
जनाब समर कबीर
(वरिष्ठ सदस्य)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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न हो क़द्र–ओ–क़ीमत जो जज़्बात की
तो क्यों आरज़ू हो मुलाक़ात की ...1
ख़बर जब न ली उसने हालात की
तकल्लुफ़ से मैंने भी फिर बात की ....2
पहुँचती नहीं ये ग़रीबों तलक
फ़क़त बात होती है सौग़ात की ...3
चलो अब सिखाते हैं उनको सबक़
जो करते हैं बातें ख़ुराफ़ात की ....4
बुरी है ये आदत बताओ उन्हें
जिन्हें लत है यारो शिकायात की ..... 5
जो इंसानियत के अलमदार हैं
बुलंदी हो उनके भी दर्जात की ....6
गुनाहों में डूबे हैं सर तक मगर
ख़बर ही नहीं है क़ुबूहात की ....7
बसी है तेरी याद दिल में तो यूँ
महक जैसे हो पहली बरसात की ....8
रज़ा चाहते हो ख़ुदा की अगर
इताअत करो तुम भी हक़ बात की ...9
बयाँ तो करो प्यार की दास्ताँ
‘ज़बाँ सब समझते हैं जज़्बात की’ .....10
शरीफ़ों में शामिल हैं वो आजकल
जो करते हैं बातें फ़सादात की ...11
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
आदरणीय नादिर खान जी, सुंदर गज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई आपको।
आपका बहुत शुक्रिया आदरणीय दयाराम जी ...
भाई नादिर ख़ान जी
सादर अभिवादन
उम्दः तरही ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल करें।
आदरणीय नादिर साहब, नमस्कार
ग़ज़ल की मुबारकबाद क़ुबूल फरमाइए।
आदरणीय नादिर जी। अच्छी ग़ज़ल हुई। बधाई स्वीकार करें।
आदरणीय नादिर जी नमस्कार
ज़बरदस्त हुई ग़ज़ल बधाई स्वीकार कीजिए,गिरह ख़ूब
सादर
आदरणीय नादिर खान जी आदाब।
बहुत अच्छी ग़ज़ल कही आपने।
बधाई स्वीकार करें।
हौसला अफ़ज़ा ई का बहुत शुक्रिया आदरणीय अमित जी...
आ. भाई नादिर जी, अभिवादन। सुन्दर गजल से मंच का शुभारम्भ करने के लिए हार्दिक बधाई।
तहे दिल से आपका शुक्रिया आदरणीय लक्ष्मण जी...
जनाब नादिर ख़ान साहिब आदाब, शानदार गिरह के साथ तरही मिसरे पर उम्दा ग़ज़ल कही है आपने शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
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