परम आत्मीय स्वजन,
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के 35 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का तरही मिसरा, शायर मीर तकी मीर की बहुत ही मकबूल गज़ल से लिया गया है |
पेश है मिसरा-ए-तरह...
"फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया"
२१२२-१२१२-२२
फाइलातुन मुफाइलुन फेलुन
मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 24 मई दिन शुक्रवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक 26 मई दिन रविवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
अति आवश्यक सूचना :-
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये गये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
श्री राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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तहे दिल से शुक्रिया आदरणीया कल्पना जी !!!
आशीष नैथानी जी बहुत सुन्दर वाह वाह /// सादर बधाई स्वीकारें.
शुक्रिया भाई राम शिरोमणि जी !
आशीष जी बहुत खूब ...सारे ही शेर कमाल के हुए हैं ..कंगन वाला शेर, डाकिये वाला शेर,, बच्चे को घुमाने वाला शेर और गिरह का शेर बेहतरीन कहन का उम्दा नमूना है| मेरी तरफ से ढेर सारी दाद कबूल कीजिये|
बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय राणा जी !!
वाह आशीष जी, नपे-तुले सारगर्भित व संतुलित अश'आर मौन कर दे रहे हैं......
शहर हर रोज हादिसा लाया
जान अपनी मैं फिर बचा लाया ॥
हादसों से भरे शहर में जीने की विवशता, अपने आप को बचाये रखने का संघर्ष इन दो पंक्तियों में सिमट आया है.
मुफलिसी में कभी बिके कंगन
आज बाजार से उठा लाया ||
अय हय हय, क्या कहने. जीवन में संघर्षरत रहते हुए जब कोई सफलता हासिल होती है तो खुशी का पारावार नहीं रहता. सच कहा जाए तो इन ऊँचे-नीचे रास्तों का नाम ही ज़िंदगी है.बेशक़ यहाँ ज़िंदगी परिभाषित हुई है.
ख़त लिखा था तुम्हें जवानी में
कल जवाब उसका डाकिया लाया ॥
अनुत्तरित सवालों के जवाब जब समय बीतने के बाद कभी मिल जाते हैं तो कसक पैदा करते हैं, मगर मन को गुदगुदा भी तो जाते हैं, इस अश'आर की परिक्व सोच के लिए बधाई...........
और थोड़ी सी बढ़ गयी साँसें
एक बच्चे को मैं घुमा लाया ||
सच्चा प्रेम और निश्छल व्यवहार सिर्फ बच्चों तक ही सीमित रह गया है. वरना आज कल अपनों ने उम्र घटाने में कोई भी कसर बाकी नहीं रखी है. मन आनंदित हुआ..........
आदरणीय अरुण कुमार जी, आपकी विस्तृत टिप्पणी पाकर धन्य हुआ !
जिस प्रकार आपने अशआर के माने बताये वह लाजवाब है ।
आपका तहेदिल से शुक्रिया अदा करता हूँ ।
मुफलिसी में कभी बिके कंगन
आज बाजार से उठा लाया ||
ख़त लिखा था तुम्हें जवानी में
कल जवाब उसका डाकिया लाया ॥
रात चुप थी, सितारे भी गुमशुम
चाँद जलती हुई शमा लाया ॥
ये शेर कहते हुए शेर हैं. .. बहुत खूब .
बहुत-बहुत शुक्रिया सर !
उम्दा आशार हुए हैं भाई आशीष नैथानी 'सलिल' जी, मेरी दिली बधाई स्वीकारें.
बहुत-बहुत शुक्रिया सर !
ख़त लिखा था तुम्हें जवानी में
कल जवाब उसका डाकिया लाया ॥.......हाहाहा डाक विभाग पर सुन्दर शेर , वाह !
गिरह का अंदाज भी बहुत पसंद आया
हार्दिक दाद पेश है आ० आशीष जी.
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