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आदरणीय एक बार पुनः बेहतरीन ग़ज़ल से इस मंच को सजाया है आपने , बधाई आपको ..
नवीन भाई जी, आप ऐसे "बरसाती मौसम" से कब से डरने लगे ? आपको बिलकुल भी कहीं जाने की अनुमति नहीं है ! तीसरे दिन तक आपको यहीं रहना है, और आपकी तीसरी ग़ज़ल का भी मुझे बेसब्री से इंतज़ार है !
ये हुई दोस्तों वाली बात !!!
वन्दे मातरम दोस्तों,
खुदा ने नवाजा है, इंसान को जिससे,
खुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत !!1
खुदा ने चाहा दूं इंसान को तोहफा,
फलक से जमीन पर उतारी मुहब्बत!!2
अपने ही लहू को, अपने हाथों मिटाते,
ये आखिर है कैसी हमारी मुहब्बत !!3
जमाना बदलने की रखती है जिद जो,
बगावत की है चिंगारी मुहब्बत !!4
प्रेमी जोड़ों के रोज, होते कत्ल पर,
आनर किलिंग पर है, भारी मुहब्बत !!5
जाति, धर्म, रस्मो की, बलि बेदी पर,
रीती रिवाजों से क्यूँ हारी मुहब्बत !!6
लैला मजनू शीरी फरहाद की राह पर ही,
फिर चल पड़ी ये बेचारी मुहब्बत!!7
मुहब्बत आदम को इन्सां बनाती,
सिखाती हमे दुनियादारी मुहब्बत !!8
सभी तुझ पे, मिटने की खातिर हैं ज़िंदा,
है क्या खास तुझमे बता री मुहब्बत !!9
फिर कत्लगाह में, खींच ही लाई,
साम्प्रदायिक हुई हत्यारी मुहब्बत !!10
मुहब्बत कहाँ कब, उम्र को देखती है,
पर बदनाम बस क्यूँ कुंवारी मुहब्बत!!11
उनकी विरासत बम और खूंरेजी,
वो समझते कहाँ है हमारी मुहब्बत !! 12
मुहब्बत ही बसती है सरहद के आर पार,
पर कट्टरता ओ नफरत से हारी मुहब्बत!!13
मुहब्बत की भाषा कहाँ जानते वो
उन्हें डरपोक लगती हमारी मुहब्बत!!14
गजल, छंद, जो सीखना चाहे "दीवाना"
तो OBO से कर ढेर सारी मुहब्बत !!15
वन्दे मातरम दोस्तों,
फिर एक कोशिश आपके सामने इस बार भी विनम्र अनुरोध मेरी गलतियाँ जरूर बताएं
O.B.O.के परचमकारों व पाथक/लेखकों को सलाम करते हुवे अपनी रचना पोस्ट कररहां हूं ,
तवज्जो चाहूंगा।
ख़ुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत,
वफ़ाओं से लबरेज़ है ये इमारत।
ख़ुदा वालों से भी ये डरती नहीं है
तिलक वालों को भी रुलाती है उलफ़त।
हुई तोड़ने की कई कोशिशें पर,
सदा चोट खाकर हुई और उन्नत।
ग़मों से निभाओ ख़ुशी से , मिलेगी
तसल्ली,सुकूनो-करारो-मसर्रत।
फ़िज़ाओं में दिल मेरा लगता नहीं है,
तेरी ज़ुल्फ़ों के साये में मेरी ज़न्नत।
ज़मानत चराग़ों की मैं ले चुका हूं,
कहां हैतेरी आंधियों की अदालत।
समंदर को कल मैंने धमकाया है वो,
तेरी आंखों से रखता है क्यूं अदावत।
सफ़र से बहुत डरता था कल तलक , तू
मिली तो किया मंज़िलों से बग़ावत।
फ़कीरी मुहब्बत में तूने मुझे दी,
मेरे दिल के कासे पे भी कर इनायत।
रसोई मेरी सूनी सूनी है दानी,
उसे दस्ते-मासूम की है ज़रूरत।
//बहुत ही खूबसूरत मतला !//
इस नाचीज़ की तारीफ़ के लिये बहुत बहुत शुक्रिया , जिस तरह आपने सारे अशआर
को विशलेषित किया है मैं उसके लिये आपको दिल से सलाम करता हूं।
बहुत खूब दानी जी. बधाई. प्रभाकर जी के बाद कुछ कहना शेष नहीं है.
बेहतरीन ग़ज़ल है दानी जी, बहुत बहुत बधाई
दिल को छू गयी निम्न पंक्तियाँ बहुत बधाई !!!
"रसोई मेरी सूनी सूनी है दानी,
उसे दस्ते-मासूम की है ज़रूरत।"
उम्द्दा संजय भाई साहब , एक पर एक बेहतरीन शे'र , खुबसूरत प्रस्तुति |
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