आदरणीय साहित्य प्रेमियो,
सादर अभिवादन ।
महा-उत्सव के नियमों में कुछ परिवर्तन किये गए हैं इसलिए नियमों को ध्यानपूर्वक अवश्य पढ़ें |
पिछले 35 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलमआज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :
"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक - 36
विषय - "परम्परा और परिवार"
आयोजन की अवधि- शुक्रवार 11 अक्टूबर 2013 से शनिवार 12 अक्टूबर 2013 तक
(यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)
तो आइए मित्रो, उठायें अपनी कलम और दिए हुए विषय को दे डालें एक काव्यात्मक अभिव्यक्ति. बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य-समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित पद्य-रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.
उदाहरण स्वरुप साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --
तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
हाइकू
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)
अति आवश्यक सूचना :-
ओबीओ लाईव महा-उत्सव के 36 में सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अधिकतम दो स्तरीय प्रविष्टियाँ अर्थात प्रति दिन एक ही दे सकेंगे, ध्यान रहे प्रति दिन एक, न कि एक ही दिन में दो. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर एक बार संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.
आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है.
इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 11 अक्टूबर दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा)
यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तोwww.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
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मंच संचालिका
डॉo प्राची सिंह
(सदस्य प्रबंधन टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.
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मैं आपको पहली बार पढ़ रहा हूं। सर्वप्रथम आपकों सादर प्रणाम! भार्इ जी आपने रचना के विधा पर प्रकाश नहीं डाला है फिर भी आपकी रचना बेहद खूबसूरत है। हार्दिक बधार्इ स्वीकारें। आदरणीय रत्ती भार्इजी, सादर,
वक़्त की दुश्वारियां, लेती रहेंगी इम्तेहां
खानदान महफूज़ "रत्ती" , बचाये गुनहगारों से ....खूबसूरत ख्याल आद० सुरिंदर रत्ती जी!
परम्परा का करें निर्वहन, यदि विवेक अनुसार।
विकसित हों परिवार हमारे, सुखमय हो संसार
नाते-रिश्तों की जंजीरें, मज़बूत हैं फोलाद सी
महक़ उठती प्यार की, दिल के गलियारों से
बहुत सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय सुरिंदर रत्ती जी ...हार्दिक शुभकामनाएं
बहुत ही सुंदर प्रस्तुती आदरणीय सुरिंदर रत्ती जी बधाई आपको
सुंदर विचार और सुंदर भावों के लिए आपको हार्दिक बधाई
इन रिवाजों के भवंर का, कुछ तो होता है असर
दे सदा आबाद कुनबे, ऊँचे बड़े मीनारों से
बहुत सुन्दर भाव आदरणीय रत्ती जी
वाह! बहुत सुन्दर भाव! आपको हार्दिक बधाई इस अभिव्यक्ति पर!
बहुत बार ऐसा होता है रचना ग़ज़ल या गीत सी दिखती है पर ग़ज़ल या गीत नहीं होती, ऐसे में वो क्या होती है, ये विचार हरबार मुझे परेशान करता है! इस बिंदु पर आपका मार्गदर्शन अपेक्षित है!
सादर!
आदरणीय, सुंदर रचना हेतु बधाई स्वीकार कीजिये...........
सुरिन्दर रत्ती जी बधाई , संयुक्त परिवार का सुंदर गुणगान किया।
आपकी प्रस्तुति के लिए धन्यवाद आदरणीय सुरीन्दर साहब.
ग़ज़ल तो नहीं, इस ग़ज़लनुमा के लिए हार्दिक बधाई. बहुत पते की बातें की हैं आपने, साहब.
एक बात :
मीनार तो स्त्रीलिंग संज्ञा है न !? .. मुझे भी आश्वस्त करें, प्लीज. :-)))
सादर
आदरणीय सुरिंदर जी ओबीओ परिवार एवं महोत्सव में आपका हार्दिक स्वागत है, आपकी रचना को पहली बार पढ़ रहा हूँ, आपके विचार बहुत ही अच्छे हैं बेहद सुन्दर विषय से न्याय करती रचना हेतु बधाई स्वीकारें.
//नाते-रिश्तों की जंजीरें, मज़बूत हैं फोलाद सी
महक़ उठती प्यार की, दिल के गलियारों से//
फौलाद सी मजबूत तो है किन्तु नाजुक भी है, बहुत संभाल कर रखना होता है, अच्छी प्रस्तुति हुई है, बहुत बहुत बधाई ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
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