For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

घर में वह नोट कितना बड़ा लग रहा था , मगर बाज़ार में आते ही बौना हो कर रह गया । वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या खरीदें , क्या न खरीदें । मुन्ना निश्चय ही पटाखे - फुलझड़ियों का इंतज़ार कर रहा होगा । उसकी बीवी खोवा, मिठाई , खील- बताशे और लक्ष्मी - गणेश की मूर्तियों की आशा लिए बैठी होगी, ताकि रात की पूजा सही तरीके से हो सके ।


वह बड़ी देर तक बाज़ार में इधर उधर भटकता रहा । शायद कहीं कुछ सस्ता मिल जाए । मगर भाव तो हर मिनट में चढ़ते ही जा रहे थे । हार कर उसने कुछ भी खरीदने का इरादा छोड़ दिया । मगर घर लौट कर मुन्ना और अपनी बीवी की निराश आँखों का सामना करने का साहस वह नहीं जुटा पाया । निरुद्देश्य सा वह बड़ी देर तक इधर-उधर भटकता रहा । वह नोट अभी भी उसकी जेब में पड़ा था ।


रात हो चुकी है । सारा शहर रोशनी से जगमगा रहा है । पटाखों की धमक से आसमान गूंज रहा है। मुन्ना अपने पापा का इंतजार कर रहा है और पापा नशे में चूर डगमगाते कदमो से घर की ओरे लौट रहा है । वह नोट अब उसकी जेब में नहीं है । वह जानता है कि घर में अब कोई उसके सामने नहीं पड़ेगा । उसकी पत्नी उसका खाना उसके सामने रख कर चुपचाप चली जाएगी । मुन्ना डरा-सहमा किसी कोने में दुबक जायेगा ।

.

मौलिक एवं अप्रकाशित
अरविन्द भटनागर' शेखर'

Views: 851

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by ARVIND BHATNAGAR on October 31, 2013 at 1:41pm

बहुत आभार आदरणीय प्राची जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 30, 2013 at 12:11pm

बहुत गहरे स्पर्श करती है आपकी यह लघु कथा..

महँगाई, लाचारी, सपनों को रौंदती... समाज में व्याप्त दीखती सी विसंगतियों के कारण पर कलम रखती एक संवेदनशील प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई आ० अरविन्द भटनागर जी 

Comment by रमेश कुमार चौहान on October 27, 2013 at 6:28pm

कहानी का प्रारंभिक चित्रण बहुत ही यथार्थ परक प्रभावशाली लगा इस हेतु आपको ढेरो बधाई ।

Comment by ARVIND BHATNAGAR on October 27, 2013 at 2:57pm

धन्यवाद् आदरणीय  जीतेन्द्र जी ,चर्चित जी ,लक्ष्मण प्रसाद जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 27, 2013 at 11:49am

गरीबी का दर्द झेलते गम में मैखाने से लौटते हमारे देश में अभी भी हर शहर में मिल जायेंगे | 

सुरसा समान नित बढती महंगाई के दर्द की मार्मिक कथा के लिए हार्दिक बधाई 

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on October 26, 2013 at 11:26pm

दीवाली पर वो कसैला एहसास जो हर आम आदमी को होता है.....उसी एह्सास की खुशबू से महकती लघु कथा.... अत्यन्त सराहनीय !!!!

Comment by vijay nikore on October 26, 2013 at 6:39pm

गरीबी की दर्द भरी सच्चाई पर इस मार्मिक लघु कथा के लिए बधाई।

 

इसी प्रष्ठ्भूमि पर लिखा मेरा स्वयं जीया हुआ संस्मरण  "भूख"  शायद

आपने लगभग २ सप्ताह हुए यहाँ ओ बी ओ पर पढ़ा होगा।

 

सौरभ जी कि निम्न पंक्तियाँ भी बहुत अच्छी लगीं। उनको भी बधाई।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 25, 2013 at 11:50pm

बहुत ही हृदयस्पर्शी लघु कथा, बधाई स्वीकारें आदरणीय अरविन्द जी

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 25, 2013 at 9:11pm

आ0 अरविन्द भार्इ जी,   वाह..वाह...वाह....किन्तु इस वाह वाह में भी इक नश्तर कहीं छुपा हुआ है। सौरभ सर जी ने बिलकुल सही कहा है कि गर मनुष्य विपदाओं से अथवा जटिलताओं में मुख मोड़ लेगा तो यह संसार निश्संदेह गर्त में मिल जाएगा।  जहां एक ओर आपने यथार्थ का अप्रतिम रेखांकन किया है, वहीं इसमें रंगों के चयन में कुछ खामियां रह गर्इ।  फिलहाल अन्तरात्मा को प्रभावित करती सुन्दर रचना के लिए आपको तहेदिल से हार्दिक बधार्इ।  सादर,

Comment by ARVIND BHATNAGAR on October 25, 2013 at 9:10pm

आदरणीय सारथी  जी आपकी सराहना एवं .हौसला अफजाई का शुक्रिया .....

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
3 hours ago
Admin posted discussions
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति,उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए आभार। आपका मार्गदर्शन…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ भाई , ' गाली ' जैसी कठिन रदीफ़ को आपने जिस खूबसूरती से निभाया है , काबिले…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील भाई , अच्छे दोहों की रचना की है आपने , हार्दिक बधाई स्वीकार करें "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है , दिल से बधाई स्वीकार करें "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service