For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा अंक ४० में सम्मिलित सभी गज़लों का संकलन (चिन्हित मिसरों के साथ)

परम आत्मीय स्वजन

सादर प्रणाम,

हालिया समाप्त तरही मुशायरे का संकलन हाज़िर है| मिसरों में वही दो रंग हैं, लाल=बेबह्र, हरा=ऐब वाले मिसरे|

.

तिलक राज कपूर 

 

सवाल पूछ रहे हो जो इस ज़माने से
समझ सके तो कहोगे कि हैं पुराने से।

 

सदा बने हैं मेरे काम मुस्कराने से
बना न काम कभी त्यौरियॉं चढ़ाने से।

 

दिलों पे राज किया चन्द‍ घर बसाने से
मिला न कुछ भी कभी बस्तियॉं मिटाने से।

 

असर हुआ तो, मगर देर तक नहीं ठहरा
इक आफ़ताब के बेवक्त डूब जाने से।

 

हवायें तेज बहुत हैं जरा संभल के चलो
यहॉं गिरे हैं कई चाल डगमगाने से।

 

जिसे यकीं था वही पार हो सका लेकिन
कहॉं वो पार हुआ जो डरा दहाने से।

 

उठा न सूर्य मगर रौशनी दिखी सबको
करिश्मा ये भी हुआ दीप आजमाने से।

 

क्षितिज की धार चमकने लगी तो वो बोला
हुआ है वक्त निकलते हैं फिर ठिकाने से।

 

नदी के घाट पे ठहरी हैं कश्तियॉं सुन कर
नगर के लोग सभी हो गये सयाने से।

 

नया है वक्त नयी है विकास की भाषा
मिला है मॉल कई झुग्गियॉं मिटाने से।

 

नदी कभी थी मगर सूखकर बनी नाला
नगर के दिल पे घनी बस्तियॉं बसाने से।

****************************

गिरिराज भंडारी 

 

दिल आज चुप मेरा बैठा रहा मनाने से
चलो वो राह में आया किसी बहाने से

 

लहर खुशी की अँधेरों में दिख रही अब तो
इक आफताब के बे वक़्त डूब जाने से

 

तू आ, कभी तो उतर ,छत पे चाँदनी मेरी
उजाला दूधिया देखा नही जमाने से

 

सुना है , ख़ौफ़ में खुर्शीदो माह दोनों है
दियों के हाथ ,दियों से मिलाये जाने से

 

ये बहना आँसुओं का यूँ तो कम नही होगा
बदल न पायगा कुछ अपने मुस्कुराने से

 

ज़हर भरा है फ़िज़ाओं मे सांस लेना है
मिला दे सांस भी अपनी किसी बहाने से

 

मेरी वफ़ा की निशानी वहाँ पे रक्खी थी
चुरा लिये हैं उसे भी गरीब खाने से

 

सही पता तो सभी का ख़ुदा के घर का है
न जाने कौन गुजर ले सराय खाने से

****************************

शिज्जू शकूर 

 

मेरे नसीब मुसल्सल तेरे सताने से
अब आ गया मुझे जीना यूँ आजमाने से

 

कुछ एक पल के लिये बदहवास हो गये सब
“इक आफताब के बे-वक्त डूब जाने से”

 

घड़ी-घड़ी जो पुकारे न जाने क्यूँ मुझको
फिर आज ख़्वाब अधूरे वही पुराने से

 

सुना है आ ही गया ज़ेरे-संग वो इक रोज़
कभी जो बचता रहा कोई चोट खाने से

 

ये इश्क़ और वफ़ा गाह रंजो-शाद कभी
ग़ज़ल के रंग में डूबा हूँ इक ज़माने से

 

किसी से कर न सका दर्द मैं बयां अपना
न निकली हसरते-दिल भी किसी बहाने से

****************************

वंदना 

 

उफ़क पे हो न सही फ़ाख्ता उड़ाने से
हुनर की पैठ बने पंख आजमाने से

 

चलो समेट चलें बांधकर उन्हें दामन
मिले जो फूल तिलस्मी हमें ज़माने से

 

रही उदास नदी थम के कोर आँखों की
पलेंगे सीप में मोती इसी बहाने से

 

निकल न जाए कहीं ये पतंग इक मौका
अगर गया तो रही डोर हाथ आने से

 

बुझे अलाव हैं सपने मगर अहद अपना
मिली हवा तो रुकेंगे न मुस्कुराने से

 

शफ़क मिली है वसीयत जलेंगे बन जुगनू
इक आफ़ताब के बेवक्त डूब जाने से

 

अभी तो आये पलट कर तमाम खुश मौसम
बँटेंगे खास बताशे छुपे ख़ज़ाने से

*****************************

नीलेश नूर

 

नई किताब के सफ्हे लगे पुराने से,
ग़ज़ल कहेगी हमें अब नए बहाने से.

 

हमें न थाम सकेगा कोई सहारा अब,
हमें शराब ही रोकेगी लड़खड़ाने से.

 

लगे हैं लोग मुझे देख बुदबुदाने कुछ,
छुपा रखा था तेरा नाम इस ज़माने से.

 

सभी ने बांध रखी हैं दिलों में गिरहें चंद,
कत’आ हुए है सभी रब्त, आज़माने से.

 

फ़लक़ झटक के गिरा डालता सितारे चाँद,
मगर है बख़्श दिया उनके गिड़गिड़ाने से.

 

लगी न अक़्ल ठिकाने अभी तलक़ उसकी,
किसी के आज भी निकलें हैं ख़त, सिरहाने से.

 

सफ़र में बैठ गया, पाएगा कहाँ मंज़िल,
कही ये बात है, सूरज ने इस दिवाने से.

 

चिराग़ जान गए थे हवा की हर फ़ितरत,
मगर वो बाज़ न आए हवा बनाने से.

 

वो आदमी भी नहीं, तुम ख़ुदा बताते हो,
लगे थे पहले पहल तुम बड़े सयाने से.

 

बने हुए हैं ख़लीफ़ा जहान के जुगनू,
"इक आफ़ताब के बे वक़्त डूब जाने से".

 

अयाँ हुई ये हक़ीक़त, मरा वो बिस्तर पर,
ये सिलवटें है पड़ी ‘नूर’ छटपटाने से.

*****************************

शकील जमशेदपुरी 

 

सुकून दिल को न मिलता किसी बहाने से
बहुत उदास हो जाता हूं तेरे जाने से

 

नहा रहा है पसीने से फूल बागों में
चटक रही है कली उसके मुस्कुराने से

 

फिर एक बार इरादा किया है मिटने का
ये बात जा के कोई कह तो दे जमाने से

 

जवान बेटी की शादी की फिक्र है शायद
वो रात को भी न आता है कारखाने से

 

शहर में जुल्म हुआ किस तरह से दीपों पर
'इक आफताब के बेवक्त डूब जाने से'

 

लिखोगी रोज मुझे खत ये तय हुआ था पर
खबर न आज भी आई है डाकखाने से

 

‘शकील’ और न रुसवा हो अब जमाने में
कि बाज आ भी जा अब तू फरेब खाने से

*****************************

इमरान खान 

 

हमें सज़ायें मिली हैं ये दिल लगाने से,
बहुत सताती है दुनिया हमें बहाने से।

 

हमारी सोच पे माज़ी का एक पहरा है,
कोई निकाले हमें आके कैदखाने से।

 

हमारे घर में अंधेरों के रक्स होते हैं,
इक आफताब के बेवक्त डूब जाने से।

 

हज़ार बार उन्हें इम्तेहाँ दिये लेकिन,
वो फिर भी बाज़ नहीं आये आज़माने से।

 

हम उनके नाम ये सारी हयात करते हैं,
चराग़ जलने लगे जिनके मुस्कुराने से।

 

वो जिनके वास्ते हम इस जहाँ के हैं दुश्मन,
ये दिल उदास है उनके नज़र चुराने से।

 

मैं शायरी का दीवाना हूँ इसलिए क्योंकि,
सुकून मिलता है कागज़ कलम उठाने से।

*****************************

दिगंबर नासवा

 

नहीं वो काम करेगा कभी उठाने से
जो सो रहा है अभी भी किसी बहाने से

 

तमाम शहर पे हैवान हो गए काबिज़
इक आफताब के बे बक्त डूब जाने से

 

लिखे थे पर में तुझे भेज ना सका जानम
मेरी दराज़ में कुछ खत पड़े पुराने से

 

कभी न प्यार के बंधन को आज़माना तुम
के टूट जाते हैं रिश्ते यूं आजमाने से

 

तू आ रही है हवा झूम झूम कर महकी
पलाश खिलने लगे डाल के मुहाने से

*****************************

संजय मिश्रा "हबीब"

 

मना सका न जमाना किसी बहाने से।
खुशी चली ही गई रूठ कर जमाने से।

 

गया नहीं फिर अंधेरा हुआ नुमायाँ जो,
इक आफताब के बेवक्त डूब जाने से।

 

तवील रात सितारों पे स्यात भारी है,
ये जान पड़ता सितारों के कंपकपाने से।

 

ये नाबकार सियासत कहा झिझकती है,
पड़ा जो वक़्त रिआया का खूँ बहाने से।

 

मुझे डुबो ही गया जिसको नाखुदा माना,
ये तयशुदा है सिला दोस्त दिल लगाने से।

 

‘हबीब’ नग्में मसर्रत के गो सुनाता पर,
ज़िगर का दर्द कहाँ जाता मुस्कुराने से।

****************************

केवल प्रसाद

 

ये वादियां ये नजारें सभी सुहाने से।
झुका हुआ है गगन आंधियां चलाने से।।

 

ये चांद रात जलें, दास्तां जमाने से।
नदी-लहर में खुशी, चांदनी बहाने से।।

 

उठो चलो कि बहारें तुम्हें बुलाती हैं।
चमन में फूल खिलाओ बसंत आने से।।

 

मान दिया है जिसे शाम ही डंसे मुझको।
यहीं मिला है खुदा आत्मा जगाने से।।

 

रूलाए खून के आंसू, बता रहे मूंगा।
नसीहतों से भरी राह, खौफ-ताने से।।

 

मुझे ये डर है कि बेमौत मर न जाएं हम।
इक आफताब के बेवक्त डूब जाने से।।

*****************************

सचिन देव

 

मां खुश बहुत थी कभी उसके घर से जाने से
दहल गई वही अस्मत पे आंच आने से

 

वो लाल जोड़े में घर से विदा न ले पाई
कफ़न को ओढ़े वो रुखसत हुई ज़माने से

 

दरिंदों की भी ज़रा रूह तो डरी होगी
बदन को नुचते हुए उसके गिडगिडाने से

 

हुई है शर्म से इंसानियत भी तो पानी
तुम्हारे वहशियों उस पल के वहशियाने से

 

भला किया था क्या उसने जो ज़िन्दगी खोयी
सज़ा मिली है तो नादान को बहाने से

 

सुकून कुछ तो मिले उसकी रूह को शायद
दरिंदों वहशियों को फांसी पे चढाने से

 

लगे है आज भी चन्दा की चांदनी मद्धिम
एक आफताब के बेवक्त डूब जाने से

*****************************

अतेन्द्र कुमार सिंह रवि 

 

बताना यार मुझे क्या मिला रुलाने से
उठा है दर्द अभीं दिल के आसियाने से

 

मेरी वफ़ा का जनाज़ा चला इधर से जो
रचा रचा के हिना संग है बेगाने से

 

नहीं सजी है कभी रागिनी वफाओं की
इक आफताब के बेवक्त डूब जाने से

 

वो सामने था मगर आज ये लगा कैसा
कोई मिला है अभी हमसे इक जमाने से

 

वो पास थे या किसी ख्वाब के बने मंजर
खफा हुए जो जरा उनपे हक़ जताने से

 

हमें पता था मुहब्बत नहीं किया तुमने
इक आसरा भी चला अब तेरे ठिकाने से

 

तेरी तलाश मेरी आशिकी रहे बाकी
न भूल पाये मुहब्बत कभी दीवाने से

*****************************

प्रकाश पाखी

 

मिला न कुछ जब रिश्तों को आजमाने से
तो दर्द खुद के को क्या फायदा सुनाने से

 

बेनूर हो छुपती कहकशाँ ज़माने से
इक आफ़ताब के बेवक्त डूब जाने से

 

कहाँ कहाँ न उजाला किया जला खुद को
न बच सका तो वो नफरत के बस निशाने से

 

है खोजते अब जो कायनात में उसको
न बाज आये थे कभी उसकी शै मिटाने से

 

जुदा जुदा है तो प्यादा वजीर जब खेलते
जगह इक आते है बाज़ी ख़तम हो जाने से

 

विलीन हो गया अब हंस नाद में पाखी
मिलेगा क्या अब तुझे उसके पीछे जाने से

****************************

अरुण कुमार निगम

 

किया गरीब मुझे फिर किसी बहाने से
इक और छीन लिया सुर मेरे तराने से |

 

न सुर सजे न सधे बोल कैसे गाऊँ मैं
सुरों का एक मसीहा गया ज़माने से |

 

रुला-रुला के गई हाय चाह हँसने की
हयात रूठ गई सिर्फ मुस्कुराने से |

 

ये रात भीगी हुई मस्त थी फिजाँ सारी
हसीन चाँद मेरा ले गए खजाने से |

 

चिराग जल न सके, रौशनी हुई तन्हा
इक आफताब के बेबक्त डूब जाने से |

****************************** 

विशाल चर्चित

 

बुझे चराग जले हैं जो इस बहाने से
बहुत सुकून मिला है तेरे फिर आने से

 

बहुत दिनों से अंधेरों में था सफर दिल का
इक आफताब के बेवक्त डूब जाने से

 

नया सा इश्क नयी सी है यूं तेरी रौनक
लगे कि जैसे हुआ दिल जरा ठिकाने से

 

चलो कि पा लें नई मंजिलें मुहब्बत की
बढ़ा हुआ है बहुत जोश चोट खाने से

 

कसम खुदा की तेरे साथ हम हुए चर्चित
जरा सा खुल के मुहब्बत में मुस्कुराने से

**********************************************

 

 संदीप कुमार पटेल जी

 

तके हैं राह बिछा चश्म हम दिवाने से
सुकून दिल को मिले है तुम्हारे आने से

 

करे हो जिक्र किसी गैर का मेरे आगे
हमारा दिल यूँ जलाते हो तुम बहाने से

 

यूँ पहली बार तुझे देख के लगा मुझको
के इंतज़ार तेरा ही था इक जमाने से

 

तू रब है और समन्दर की जैसे दिल तेरा
बस एक बूँद की चाहत है इस खजाने से

 

पता अभी का नहीं और बात कल की करो
लगे हो आप तो हमको बड़े सयाने से

 

बसा लिया है तुम्हे चश्म में कुछ ऐसे कि
लगे जो आँख मेरी ख्वाब हों सुहाने से

 

गुरूर छाने लगे जुगनुओं के दिल में भी
इक आफताब के बे वक़्त डूब जाने से

 

नहीं हो तुम जो मेरे पास गर्दिशें यूँ बढ़ें
के चैन मिलता नहीं दीप भी जलाने से

************************************

राणा प्रताप सिंह

 

हमारी जेब में हैं ख़्वाब कुछ पुराने से
जिन्हें छुपा के रखे थे हम इक ज़माने से
.
अभी तो आयेंगे मौसम कई सुहाने से
तुम्हारे इश्क के दरिया में बस नहाने से
.
लबों को तेरे सभी इक गुलाब कहते हैं
मगर हमें वो लगे हैं शराबखाने से
.
तुम्हारे दस्ते हिनाई का मखमली एहसास
भुलाए भूल भी सकते नहीं भुलाने से
.
अगर लुटाओगे तुम हुस्न का ये सरमाया
तो हम भी बाज़ न आयेंगे दिल लगाने से
.
तुम्हारी आँखों के काज़ल से इतना है कहना
न देना अश्क छलकने किसी बहाने से
.
वो रात हिज्र की कुछ और भी तवील हुई
एक आफताब के बेवक्त डूब जाने से

***********************************

सुरिंदर रत्ती जी

 

ये आग है उल्फ़त की बढ़े बुझाने से ।
ख़ुशी नहीं मिलेगी धड़कने चुराने से ।।

 

बहल जाये दिल गीतों के गुनगुनाने से ।
मिले सुकून तुम्हारे क़रीब आने से ।।

 

ग़ज़ब तेरा जलवा के बचा नहीं कोई ।
तुम्हारे प्यार में डूबे सभी दिवाने से ।।

 

छुपा लिया है चेहरा ग़ैर जान के फिर से
सनम ये परहेज़ क्यूँ क्या मिले छुपाने से ।।

 

सुलग रही कब से सांसें दिल्लगी करके ।
नज़र लगी किसकी डर मुझे ज़माने से ।।

 

हैं पास चाँद कई फ़र्क़ क्या पड़ेगा अब ।
इक आफ़ताब के बे वक़्त ड़ूब जाने से ।।

 

समझ के भी न समझ बनते हैं सभी "रत्ती"।
कभी बड़े अहमक़ लगते हैं सयाने से ।।

***************************

संदीप सिंह सिद्धू "बशर"

 

ज़मीर-ओ-अज़्म सलामत हैँ, सर उठाने से,
निखार पाता है किरदार, आज़माने से |

 

ख़िज़ाँ हो ज़िन्दगी, या ज़लज़ला, या तूफाँ हो,
वो आदमी ही क्या, जो डर गया, बहाने से |

 

वतन ग़ुलाम था तो सरफरोश क़ौमेँ थीँ,
पर अब तो क़ैद है आज़ादी ख़ुद, ज़माने से |

 

चले न इल्म पे जब ज़ोर, उम्र-ओ-दौलत का,
तो शर्म कैसी, मिले जो, ग़रीबख़ाने से ?

 

अदा-ओ-नाज़ बढ़े, उन के, अपना सब्र बढ़ा,
कि इश्क़ बढ़ता है, यूँ रूठने-मनाने से |

 

शब-ए-हयात ने, हर ख़्वाब को, सहर बख़्शी,
“ इक आफताब के, बे-वक़्त, डूब जाने से ”

 

“बशर” ख़ुदा की ग़ज़ल का वो शेर है, जिस मेँ,
है रब्त, वक़्त से, तो ऐब, वक़्त जाने से...

*******************************

रमेश कुमार चौहान

 

रूठा मुहब्बते खुर्शीद औ मनाने से
फरेब लोभ के अस्काम घर बसाने से

 

ऐ आदमियत खफा हो चला जमाने से
इक आफताब के बेवक्त डूब जाने से

 

नदीम खास मेरा अब नही रहा साथी
फुवाद टूट गया उसको आजमाने से

 

जलील आज बहुत हो रहा यराना सा..ब
वो छटपटाते निकलने गरीब खाने से

 

असास हिल रहे परिवार के यहां अब तो
वफा अदब व मुहब्बत के छूट जाने से

.

**************************

अशफ़ाक़ अली (गुलशन खैराबादी)

 

जो पास आता नही है कभी बुलाने से
वो भूलता भी नही है मेरे भुलाने से

 

मिलेगा क्या उन्हें रूदाद-ए-ग़म सुनाने से
वो मुतमइन ही नही जब मेरे फ़साने से

 

ये बात अपने बुज़ुर्गों से सुनते आये हैं
सुकूं हैं बारगहे रब में सर झुकाने से

 

न जाने कितने चराग़ों ने ख़ुदकुशी की है
नक़ाब-ए-रुख़ तेरे यकबारगी उठाने से

 

जो बात सच है भला तुम कहाँ वो मानोगे
मुझे भी कहते हैं आशिक़ तेरा ज़माने से

 

अँधेरी हो गयी अब कयनात-ए-दिल कितनी
इक आफताब के बे बक्त डूब जाने से

 

न जाने कितनो कि क़िस्मत संवर गयी 'गुलशन'
तेरे ज़मीन पे इक गुलसितां सजाने से

*****************************

राजेश कुमारी

 

तमाम उम्र गुजरती गई सिराने से
मिला न पाई कभी हाथ इस जमाने से

 

लकीर उम्र कि बचती रही दिखाने से
छुपा सकी न कभी आईना छुपाने से

 

न छोड़ कल पे सभी काम आज पूरे कर
नहीं दुबारा मिले जिंदगी बुलाने से

 

ख़ुदा परस्त न जाने कहाँ हुआ औझल
मिली शराब भरी बोतलें ठिकाने से

 

यकीं नहीं था जिन्हें उस ख़ुदा की रहमत पर
उसी मज़ार पे वो आ गए बहाने से

 

फ़लक का नूर अचानक हुआ कहाँ गायब
इक आफताब के बेवक्त डूब जाने से

 

उसे यकीं न हुआ "राज" जिस मुहब्बत पर
मिला सुकून जरूरत में आजमाने से

*****************************

अभिनव अरुण

 

डरा नहीं जो कभी गिरने, चोट खाने से ,
उसी के नाम विजयश्री रही ज़माने से |

 

ये किसने धूल भरी आंधियों की साजिश की ,
परिंदे उड़ने ही वाले थे जब ठिकाने से

 

तुम्हें भी ख्व़ाब परेशां नहीं करेंगे पर
कभी नज़र तो हटाओ गड़े खजाने से |

 

पुरु की हार सिकंदर की जीत पर भारी
ज़मीर वाले नहीं डरते हार जाने से |

 

न जाने क्यों ये सितारे ख़ुशी से पागल हैं ,
इक आफताब के बेवक्त डूब जाने से |

 

जो साफगोई की उम्मीद तुमसे रखता था ,
बहुत उदास हुआ है तुम्हारे ताने से |

 

गुलों की हसरतें होने को हैं जवान मगर,
पराग ढूंढ रहीं तितलियाँ ज़माने से |

 

जो श्याम रंग से सकुचा छुपी है झुरमुट में,
मिठास घोल रही है मधुर तराने से |

******************************

सरिता भाटिया    

 

रही है मार ये सरकार इक ज़माने से
दिवाली फीकी हुई दाम बढ़ते जाने से /

 

करें हैं लक्ष्मी का स्वागत सजाके घर अपना
है तरसे गेह की लक्ष्मी तो प्यार पाने से /

 

बधाई मिल रही लक्ष्मी है पैदा आज हुई
चढी क्यों त्योरियां बेटी के है आ जाने से /

 

रुकी है आज तलक बेटी मायके में ही
मरा है बूढ़ा पिता अब उसे बसाने से /

 

दिखे थी बेटा जिन्हें बेटी अपनी लक्ष्मी सी
डरे हैं आज हुए वो जहां के ताने से /

 

कई है जिंदगियां मिटने को चले आओ
खुलेगी आज ये किस्मत तो तेरे आने से /

 

मिटा गरीब का है आशियाँ सदा के लिए
बना है मॉल सभी बस्तियां हटाने से /

 

हुआ है आज अँधेरा बुझी बसी बस्ती
इक आफ़ताब के बेवक्त डूब जाने से /

 

बसा दो सरिता उन्हें तो बहुत दुआएं मिलें
हटा दो आज अँधेरा दिया जलाने से /

********************************

आशीष नैथानी 'सलिल'

 

मैं चाहता हूँ कि हँसकर मिलूँ ज़माने से
ये दिल के रिश्ते निभा करते हैं निभाने से ||

 

सहूँ तो कैसे मैं ताउम्र गल्तियों कि सज़ा
ख़ुदा हटा दे मेरा नाम उस फ़साने से ||

 

ख़ुशी का एक परिंदा मेरे करीब नहीं
बसंत दूर चला आया आशियाने से ||

 

गरीब सोच में है कैसे खर्च निकलेगा
"इक आफताब के बेवक्त डूब जाने से ||"

 

ऐ दिल सँभल के चला कर कँटीली राहों में
किसी का ज़ख्म हरा हो न दिल लगाने से ||

 

अलग है बात कि आवाज़ में नहीं जादू
मगर वो खुश है मेरे यूँ ही गुनगुनाने से || 

****************************

अजीत शर्मा आकाश

 

तुम्हारी आस है इस दिल को इक ज़माने से
चले भी आओ सनम अब किसी बहाने से .

 

हरेक फूल में ख़ुशबू है, हर किरन में चमक
तुम आ गये हो तो दिन-रात हैं सुहाने से .

 

न जाने कौन सी दुनिया में गुम-स्रे बैठे हैं
बहार आती है गुलशन में जिनके आने से .

 

करेंगे हम पे निगाहे-करम कभी न कभी
वो जिनके वास्ते फिरते हैं हम दीवाने से .

 

चिरागे-दिल जो जलाओ तो झिलमिलाए जहां
अंधेरा दूर न होगा दिए जलाने से .

 

दिलों में और भड़कती ही जाती है हर दिन
ये आग प्यार की बुझती नहीं बुझाने से .

 

ठहर गया सा लगा ये जहान पल भर को
इक आफ़ताब के बे-वक़्त डूब जाने से

***************************

सूर्या बाली "सूरज"

 

मिली है प्यार की दौलत तेरे ख़ज़ाने से।
ये कम न होगी कभी भी मेरे लुटाने से॥

 

के आ भी जाओ सिमट जाओ मेरी बाहों में,
मिलेगा क्या तुम्हें आख़िर मुझे सताने से॥

 

न इसको ख़ुद की ख़बर है न है ज़माने की,
बड़ा उदास है ये दिल तुम्हारे जाने से॥

 

वतन मे अम्न का माहौल मेरे कब होगा,
सवाल पूछ रहा हूँ यही ज़माने से॥

 

सुना है देख के तुमको खिले हैं दिल में गुलाब,
ज़रा इधर भी तो आओ किसी बहाने से॥

 

बुजुर्ग माँ के कलेजे पे क्या क्या गुजरा है,
‘इक आफ़ताब के बेवक़्त डूब जाने से’॥

 

ये इश्क़ राह है, मंज़िल न ढूढ़िए इसमें,
मिलेगा कुछ भी नहीं इसमे दिल जलाने से॥

 

दिखावे करता है “सूरज” से दोस्ती के मगर,
वो बाज आता नहीं दुश्मनी निभाने से॥

****************************

वींनस केसरी

 

बड़े हुए थे जो छोटा हमें बताने से
चुरा रहे हैं नज़र आज वो ज़माने से

 

पता चला कि मेरे दोस्त ही परेशां हैं
तमाम मुश्किलों पे मेरे मुस्कुराने से

 

अरे ! तो क्या मुझे ही फिर सफाई देनी है
तो बाज़ आये अकेले हमीं निभाने से

 

तुम्हारे बज़्म की रौनक न खत्म हो जाए
"इक आफताब के बेवक्त डूब जाने से"

 

गलत को तुमने गलत कह दिया है क्या 'वीनस'
धुँआ उठा है किसी दिल के कारखाने से

***********************************************

श्री मोहन बेगोवाल

 

पता नहीं वो मिले कब यूँ ही बहाने से ।
हमें मिला था जो लड़ के सदा जमाने से ।
.
क्या नहीं हुआ हम को बता देना साथी ,
इक आफताब के बे बक्त डूब जाने से ।
.
कभी हमारा न दिल जो कुबूल कर पाया,
हमें मिले वही रिश्ते सदा निभाने से ।
.
चलो कहीं से पता लगे इसी हकीकत का,
क्यों नकार देता है हमें उठाने से ।
.
अभी हमारी बस्ती आ हमें मिलेंगे वो ,
अभी दिखा गया ख्वाब कुछ सुहाने से ।
.
तुझे दिखाएगें ये जख्म फिर कभी दोस्त ,
अभी छुपाए जो हम ने तुझे दिखाने से ।

**********************************************

राम अवध विशवकर्मा

 

चले हैं रोग भगाने अनारदाने से।
बुखार जायेगा केवल दवा के खाने से ।
.
निकालो लाख मगर वो है निकलता ही नहीं,
दिलो दिमाग पे छाया है जो जमाने से।
.
किये हैं पाप बहुत जिन्दगी में तुमने तो ,
कटेगा पाप क्या गंगा में यूँ नहाने से।
.
खुदा करे कि ढहे नफरतों की दीवारें,
अमन की खुशबू बहे मेरे आशियाने से।
.
मैं उसको देख के थोड़ा सा मुस्कराया क्या,
वो जल के खाक हुआ मेरे मुस्कराने से।
.
खराब करता है वातावरण का पर्यावरण,
धुआँ निकलता है जितना भी कारखाने से।
.
गजब का घुप्प अँधेरा जहाँ मे छाया है,
इक आफताब के बेवक्त डूब जाने से ।

 

किसी शायर की ग़ज़ल छूट गई हो अथवा मिसरों को चिन्हित करने में कोई गलती रह गई हो तो अविलम्ब सूचित करें|

Views: 6331

Reply to This

Replies to This Discussion

सादर ..राणा सर कुछ स्पष्ट हुआ पर क्या इसको यूँ कर सकतें हैं ....

हमें पता था मुहब्बत नहीं किया तुमने
इक आसरा भी चला अब है यूँ ठिकाने से

राणा सर प्रणाम ...क्या अपने इस शेर को यूँ भी कर सकते हैं ....सुझाव चाहूँगा ...सादर

हमें पता था मुहब्बत नहीं की है यारा
इक आसरा भी चला अब तेरे ठिकाने से

 

हालांकि शेर अब दोष रहित हो गया है परन्तु कहन अब भी स्पष्ट नहीं है|

प्रणाम सर ....आप कहना क्या चाहते हैं.....क्या इस शेर को लगा सकता हूँ

हमें पता था मुहब्बत नहीं की है यारा
इक आसरा भी चला अब तेरे ठिकाने से

मैं यही कहना चाहता हूँ की शेर में कोई ऐब नहीं है, हालांकि शेर वो बात नहीं कह पा रहा है जो आप कहना चाहते हैं, फिर भी आपको यदि पसंद हो तो अपनी ग़ज़ल में स्थान दे सकते हैं|

Wo baaj na aaye hume aajmane se

janaja hi uthe jinke gareebkhane se

Benoor lash bani hai wo ek jamane se

Ek aaftab ke bewaqt doob jane se. Bas yun hi gungunane ki ichchha hui itne behtareen gazal dekhkar..

वाह आदरणीय ओ.बी.ओ. टीम!!! इतने रंगीन और ख़ुशबूदार फ़ूलोँ से सजे इस गुलदस्ते के लिए आप का हार्दिक आभार एवं बधाई ।
कई ग़ज़लेँ पढ़ने और टिप्पणी करने से छूट गयी थीँ, क्यूँकि हमेँ देवनागरी मेँ टाइप करने का इतना अभ्यास नहीँ है, और इसी चक्कर मेँ रिपलाई भी बंद हो गये । हमेँ इस का बेहद अफसोस है । उम्मीद है कि अगले मुशायरे तक इस गति मेँ काफी प्रगति हो जायेगी । ख़ैर, हम आप सब को तह-ए-दिल से बधाई देते हैँ, और आभारी हैँ, यहाँ शामिल हो कर अपने मुख़्तलिफ ख़यालात का ख़ज़ाना साँझा करने के लिए, मार्गदर्शन करने के लिए, और आप की ख़ूबसूरत दाद-ओ-हौसलाअफज़ाइ के लिए । हमारी ओर से आप सब को दीपावली की भी हार्दिक शुभकामनाएँ । प्रभूत आभार ।

आदरणीय राणा  जी, त्वरित मूल्यांकन हेतु बधाई. हम भी पास हो गए भाई......................

शुभ दीपावली.............

आदरणीय महोदय, तरही मिसरा पढ़कर शाइर की पूरी ग़ज़ल पढ़ने की इच्छा होती है . अगर पूरी ग़ज़ल नहीं , तो तरह वाला पूरा शेर ही सही।  मुशाइरे के प्रारम्भ में नहीं , तो समाप्ति पर ही उपलब्ध करा  दें। कृपया सुझाव पर विचार कर लें .

आदरणीय आकाशजी, इस मंच पर तरही मुशायरे की समाप्ति के उपरांत आपके सुझाव के अनुरूप ही आयोजन के संचालक राणा भाई ने कई दफ़े ’तरह’ के शेर या पूरी ग़ज़ल ही उद्धृत की है. लेकिन ऐसा करना सदा संभव नहीं हो पाया है.

आपका सुझाव अत्यंत समीचीन है.

सादर

आभार, महोदय !!!

बहुत अधिक व्यस्तता के कारण विलम्ब से आना हुआ पोस्ट पर ,बहुत- बहुत बधाई आदरणीय राणा प्रताप जी आपको ग़ज़लों के इस संकलन हेतु मुशायरे में जो ग़ज़लें छूट गई थी यहाँ पढने को मिल गई.  

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"आदरणीय रामबली जी बहुत ही उत्तम और सार्थक कुंडलिया का सृजन हुआ है ।हार्दिक बधाई सर"
9 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
" जी ! सही कहा है आपने. सादर प्रणाम. "
22 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, एक ही छंद में चित्र उभर कर शाब्दिक हुआ है। शिल्प और भाव का सुंदर संयोजन हुआ है।…"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत…"
23 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य, आदरणीय अशोक भाई साहब।  31 वर्णों की व्यवस्था और पदांत का लघु-गुरू होना मनहरण की…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, आपने रचना संशोधित कर पुनः पोस्ट की है, किन्तु आपने घनाक्षरी की…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   नन्हें-नन्हें बच्चों के न हाथों में किताब और, पीठ पर शाला वाले, झोले का न भार…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति व स्नेहाशीष के लिए आभार। जल्दबाजी में त्रुटिपूर्ण…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में सारस्वत सहभागिता के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी। शीत ऋतु की सुंदर…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"शीत लहर ही चहुँदिश दिखती, है हुई तपन अतीत यहाँ।यौवन  जैसी  ठिठुरन  लेकर, आन …"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service