परम आत्मीय स्वजन,
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के 45 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का तरही मिसरा मेरे पसंदीदा शायर जॉन एलिया जी की ग़ज़ल से लिया गया है| पेश है मिसरा-ए-तरह
"मुझसे मिलकर उदास भी हो क्या "
2122 1212 22
फाइलातुन मुफ़ाइलुन फेलुन
( बहरे खफीफ़ मख्बून मक्तूअ )
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 29 मार्च दिन शनिवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक 30 मार्च दिन रविवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन से पूर्व किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | ग़ज़लों में संशोधन संकलन आने के बाद भी संभव है | सदस्य गण ध्यान रखें कि संशोधन एक सुविधा की तरह है न कि उनका अधिकार ।
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
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गिरिराज जी, मैं उसमें बदलाव करूँगा, हौसला अफ़ज़ाई के लिये - धन्यवाद - सुरिन्दर रत्ती
आदरणीय सुरिंदर रत्ती जी इस ख़ूबसूरत कलाम के लिए दिली दाद और मुबारकबाद
आयोजन में केवल एक ग़ज़ल पोस्ट करने का प्रावधान है, अत: आद० अविनाश बागडे जी की यह दूसरी प्रस्तुति मुशायरे से हटा दी गई है.
THANKS....
अब भी पहले सी चुलबुली हो क्या
मेरे बारे में सोचती हो क्या
दिल मेरा पूछता रहा मुझसे
सिर्फ मेरे लिये बनी हो क्या
कुंतलों में घटा समायी थी
अब भी सावन की पालकी हो क्या
नाग सी चोटियाँ वो बलखातीं
देह से अब भी संदली हो क्या
साल चालीस बीतने आये
अब भी जूही की तुम कली हो क्या
रूबरू नेट पर हुआ तुमसे
मुझसे मिलकर उदास भी हो क्या
झूठे वादों से जीत पाई थी
फिर उसी सीट से खड़ी हो क्या
काठ की हाँडियों को छोड़ो भी
इन चुनावों में तुम नई हो क्या
बाद मुद्दत के दिख रही सूरत
तुम कोई फूल मौसमी हो क्या
पुछल्ला -
कम से कम एक तो गज़ल डालूँ
आज तुम मायके चली हो क्या
(मौलिक तथा अप्रकाशित )
आ, अरुण निगम भाई , अलग अलग रंगों को समेटे , आपने बहुत खूब सूरत गज़ल कही है ॥ आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥
आदरणीय अरुण भाई,
मज़ाकिया लहजे में ही सही जो कहना था सब कह डाले , चुनावी मौसम में मिठलबरी नेत्री को भी नहीं छोड़ा। अच्छा व्यंग्य भी है ।
झूठे वादों से जीत पाई थी
फिर उसी सीट से खड़ी हो क्या
हार्दिक बधाई
क्या बात है अरुण जी ... आपके पुछल्ले ने दिल लूट लिया ... घायल कि गति घायल जाने ...
पूरी गज़ल ताजा शेरों से महक रही है ...
रूबरू नेट पर हुआ तुमसे
मुझसे मिलकर उदास भी हो क्या....वाह वाह क्या बात है... क्या बात है..लगता है फेसबुक पर चोट खाए हुए हैं..गजब का अंदाजे बयाँ है अरुण भाई..
सौ टके की कही है बात यहाँ|
बोल तू फेसबुक पे भी है क्या?..हा हा हा हा..मजाकिया लहजे में गंभीर बात कहने वाले गजल हेतु जिंदाबाद जिंदाबाद
वाह वाह आदरणीय गुरुदेव श्री जय हो जय हो बहुत ही सुन्दर लाजवाब ग़ज़ल कही है आपने पढ़कर आनंद आ गया ढेरों दिली दाद कुबूल फरमाएं.
आदरणीय अरुण सर पूरी ग़ज़ल लाजवाब है दिलीदाद कुबूल करें
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