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कमल-नैन या कंज-लोचन है वह  

कहते है शोक-विमोचन है वह  

पद्म -पांखुरी जैसे है अधर

रक्त-नलिन से कपोल है सुघर

 

नील-नीरज सा मोहक वदन

वपुष नीलोत्पल सुषमा-सदन

है दीर्घ बाहे अम्बुज की नाल

पाद-पुष्ट मानो है पंकज मृणाल

 

हाथ की हथेली है राजीव-दल

विकसित है कर में श्याम-शतदल

चरण-सरोज की है महिमा अनूप

सांवले सरोरुह सा खिला-खिला रूप

 

रहता प्रफुल्ल जिसका अंतस-कमल  

नीलोफर रूप जिसका विमल-अमल

हा ! अब्ज का यह ढेर कौन ?

बोल ! बोल ! बोल ! मेरे मुखर मौन !

 

राम हैं  या कृष्ण हैं  महज अंदाज से

या फिर तुलसी-सूर-कविता के ब्याज से

(मौलिक व् अप्रकाशित )

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 7, 2015 at 1:27pm

विजय सर !

आपने कविता की जिन पंक्तियों को पकड़ा  उससे ही  लगा आप मर्म तक पहुँच गए है i आपकी गुणज्ञता का प्रशंसक हूँ मैं i सादर i  

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 7, 2015 at 1:24pm

गुमनाम जी

हार्दिक आभार i

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 7, 2015 at 5:19am
रहता प्रफुल्ल जिसका अंतस-कमल
नीलोफर रूप जिसका विमल-अमल
हा ! अब्ज का यह ढेर कौन ?
बोल ! बोल ! बोल ! मेरे मुखर मौन !

राम हैं या कृष्ण हैं महज अंदाज से
या फिर तुलसी-सूर-कविता के ब्याज से
सुन्दर , भाव पूर्ण प्रस्तुति, बधाई आदरणीय डॉ o गोपाल नारायण जी , सादर।
Comment by gumnaam pithoragarhi on January 6, 2015 at 9:44pm
हाथ की हथेली है राजीव-दल

विकसित है कर में श्याम-शतदल

चरण-सरोज की है महिमा अनूप

सांवले सरोरुह सा खिला-खिला रूप

वाह खूब है सर जी वाह
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 6, 2015 at 3:16pm

खुर्शीद जी

सादर सप्रेम आभार i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 6, 2015 at 3:15pm

सोमेश जी

आभार प्रिय i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 6, 2015 at 3:14pm

मिथिलेश जी

हमारे आराध्य कवियों ने राम श्याम का हर अंग  कमल के समान बताया तो क्या कमल का ढेर ही हमारे भगवान् है  i प्रतीकवादी कविता इसी के विद्रोह में शुरू हुयी कि हम नये उपमानो  का प्रयोग क्यों न करें i यही इस कविता  का भी मूल है i सादर i

Comment by khursheed khairadi on January 6, 2015 at 11:25am

हाथ की हथेली है राजीव-दल

विकसित है कर में श्याम-शतदल

चरण-सरोज की है महिमा अनूप

सांवले सरोरुह सा खिला-खिला रूप

आदरणीय गोपालनारायण सर ,सुन्दर गीत है |हिंदी पर्यायवाची और समासों का सोंदर्य आपकी रचनाओं में सदैव चरम पर होता है ,जो मन मोहक है |सादर अभिनन्दन |

Comment by somesh kumar on January 6, 2015 at 10:50am

सुंदर !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 5, 2015 at 8:53pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर इस सुन्दर प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें 

सुन्दर पंक्तिया है -

हाथ की हथेली है राजीव-दल

विकसित है कर में श्याम-शतदल

चरण-सरोज की है महिमा अनूप

सांवले सरोरुह सा खिला-खिला रूप

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