परम आत्मीय स्वजन,
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के 58 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह उस्ताद-ए-मोहतरम जनाब फरहत एहसास साहब की एक बहुत ही ख़ूबसूरत ग़ज़ल से लिया गया है|
"मेरा इश्क भी कोई इश्क है कि न खुश करे न मलाल दे"
11212 11212 11212 11212
मुतफाइलुन मुतफाइलुन मुतफाइलुन मुतफाइलुन
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 24 अप्रैल दिन शुक्रवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक 25 अप्रैल दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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इस बह्र पर आपका उबूर हम पहले भी देख चुके हैं आ० गिरीराज भंडारी जी। उसी का मुज़ाहिरा इस खूबसूरत ग़ज़ल के ज़रिये भी देखने को मिला है। ढेर सारी दाद और हार्दिक बधाई।
मुझे है ललक कि उड़ूँ कभी, मै भी आसमान में दूर तक
मुझे कर अता कभी पर नये, किसी आसमाँ में उछाल दे
इस शे'र के क्या कहने!लाजव़ाब, दिल आ गया!
आदरणीय गिरिराज सर! अभिनन्दन!
मुझे है ललक कि उड़ूँ कभी, मै भी आसमान में दूर तक
मुझे कर अता कभी पर नये, किसी आसमाँ में उछाल दे
कोई चश्मे नम कभी हँस सके , कोई आबला भी चले कभी
कभी साहिलों को दे आँधियाँ, कभी कहकहों को मलाल दे
मुझे क्यूँ लगा, मेरी बेबसी , से जो तर हुई हैं कहानियाँ
वे तवील हैं, कहीं ये न हो, तू हँसी हँसी में ही टाल दे
लगा डूबने कहीं सूर्य जब , तो तमस लगा वहीं धेरने ..................... धेरने या घेरने ?
मै बिखेर दूँ कभी रोशनी , मुझे दे जियाँ, वो मशाल दे
कमाल कमाल !
आपके पूरी ग़ज़ल कमाल हुई है. लेकिन ये चार शेर मैं अपने साथ लिए जा रहा हूँ.
दिली से दाद दे रहा हूँ.
आ० अनुज
बहुत बेहतरीन . कमाल की शायरी . गिरह भी अच्छी लगाई . बधायी हो मित्र , सादर .
आ0 भंडारी भाईजी, शानदार गजल हुई है. दाद कुबूल करे. सादर
मुझे है ललक कि उड़ूँ कभी, मै भी आसमान में दूर तक
मुझे कर अता कभी पर नये, किसी आसमाँ में उछाल दे
वह सुभान अल्ला ... क्या कहने इस कमाल की ग़ज़ल के ... इस ग़ज़ल की उड़ान दूर तक खुशबू दे रही है ... बहुत बधाई ...
कोई चश्में नम कभी हँस सके , कोई आबला भी चले कभी
कभी साहिलों को दे आँधियाँ, कभी कहकहों को मलाल दे
मुझे क्यूँ लगा, मेरी बेबसी , से जो तर हुई हैं कहानियाँ
वे तवील हैं, कहीं ये न हो, तू हँसी हँसी में ही टाल दे ........ बेहतरीन ... खूबसूरत खयाल के लिए दाद कुबूल करें आदरणीय गिरिराज जी
कल सायं आ. गिरिराजभाईजी से मेरी बातें हुई थीं. वे नेट और विद्युत आपूर्ति में बाधा की समस्या से जूझ रहे थे. पता नहीं कितने नेट रिज्यूम हुआ. हो भी पाया या नहीं..
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