Tags:
Replies are closed for this discussion.
मुझे लगता है कभी कभी शीर्षक द्वारा दिया गया लक्ष्य भी अच्छी कथा उकेरने में बाधक हो जाता है, क्योंकि दिमाग में लक्ष्य रन करते रहता है, जैसे यहाँ अवश्य लेखिका "पहचान" शब्द को घेरे में रख ताना बाना बून रही होंगी और ज्योही पहचान शब्द लघुकथा में घुसा इतिश्री, परिणाम स्वरुप कथा गंभीरता के साथ स्थान नहीं ले सकी. इस सद्प्रयास पर बहुत बहुत बधाई आदरणीया शशि जी.
माँ का हक़ (लघु कथा)
जज साहब, सर्वेश दुर्गा की कानीन संतान है जिसे दुर्गा 6 माह के अवस्था में अनाथालय छोड़ आई थी | संभ्रांत परिवार के अल्पेश से विवाह बाद हुए एक मात्र पुत्र का 17 वर्ष की उम्र में दुर्घटना में मृत्यु के बाद अब निसंतान होने पर अनाथालय से जानकारी कर अपने कोख से जन्मा पुत्र वापिस चाहती है | वैसे भी गोद ले जाने वाले भीखू की मौत के बाद सर्वेश दयनीय स्थिति में अनाथ जीवन जी रहा है | खून की जांच रिपोर्ट भी दुर्गा के माँ होने की पुष्टि कर रही है |
सर्वेश ने कोख से जन्म देने वाली दुर्गा और पिता अल्पेश को पहचाने से इनकार कर उनके साथ जाने से मना कर दिया | जज ने सवेष की इच्छा को ध्यान में रख निर्णय दिया की 6 माह की अल्पायु से आज तक जिसने अपना दूध पिला पालन पोषण किया है, उसका अब सर्वेश ही एक मात्र सहारा है, जो उससे नहीं छीना जा सकता | कानीन या सहोद्र संतान को जन्म देने वाली माँ से अधिक हक़ उस धाय रुपी माँ का है जिसके दूध से वह पला |
(मौलिक अप्रकाशित)
अच्छी कहानी है आ० लक्ष्मण जी ,हार्दिक बधाई
हार्दिक आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी | सादर
आदरणीय लक्ष्मण प्रसादजी, आपकी कथा धाय माँ की तपस्या को प्रतिस्थापित करने का प्रयास कर रही है. यह अवश्य है कि देवकियों के सैकड़ों-हज़ारों दर्द पर यशोदाओं का एक वात्सल्य भाव कुर्बान रहा करता है !
आपकी कथा केलिए हार्दिक धन्यवाद
हार्दिक आभार आदरणीय श्री सौरभ पाण्डेय जी | सादर
अच्छी लघुकथा हुई है, मगर यह पहचान विषय को कैसे परिभााषित करती है आ लडीवाला जी ? कृपा उत्तर दीजियेगा धन्यवाद कह कर आगे मत बढ़ जाईयेगा।
आदरणीय श्री योग राज भाई जी, खून की जांच रिपोर्ट और अनाथालय का रिकॉर्ड से लड़का सर्वेश माँ दुर्गा की कोख से जन्मा सिद्ध होना उसके पुत्र होने के पहचान है, यद्यपि 6 माह की आयु में अनाथालय में छोड़ देने के कारण लड़का माँ को नहीं पहचानता और इसी कारण धाय रूपी माँ के वात्सल्य भाव को तरजीह देते हुए न्यायलय का निर्णय माँ की पहचान के बावजूद लड़के की भावनाओं के अनुरूप निर्णय करता है | अब हो सकता है कहनी से पहचान विषय परिभासीत न हो रहा हो |
अच्छी लघु कथा बताने के लिए आपका सादर धन्यवाद करना तो बनता ही है आदरणीय |
आपकी कथा का स्वागत है .
आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लडीवाला सर बहुत सुन्दर लघुकथा हुई है जिसकी शुरुआत प्रदत्त विषय को छूती हुई प्रतीत होती है किन्तु अंत तक आते आते पहचान विषय बिलकुल खो जाता है. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई निवेदित है. सादर
अच्छी भावपूर्ण लघुकथा , वास्तव में असली माँ तो वही है जो संतान को पाले , सिर्फ जन्म देने से माँ का हक़ नहीं मिल जाता । बधाई इस रचना के लिए आदरणीय..
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |