परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 61 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह खुदा -ए सुखन मीर तकी मीर की ग़ज़ल से लिया गया है|
"रात को रो-रो सुबह किया, या दिन को ज्यों-त्यों शाम किया"
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फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फा
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 24 जुलाई दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 25 जुलाई दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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इस विषय पर विशेषज्ञ राय की आवश्यता थी और प्रतीक्षा भी ... इस स्पष्टीकरण के लिए आभार आपका.
हा हा हा
हमने तो ह्म्म्म... कह के ही बक्श दिया था अरुण जी को आपने तो अच्छी क्लास लेली कांता जी :-)))))) यदि यहाँ कुछ ब्युटीपार्लर वाली भी होती तो क्या होता अरुण जी को हेलमेट पहनने की जरूरत पड़ जाती |हाहाहा ...
पाइलटों को ड्राइवर कोई कैसे कह सकता है ? जबकि वे होते ड्राइवर ही हैं.
आखिरी शेर से उभरते दर्द को हम महसूस कर रहे हैं आदरणीय अरुण भाईजी. हा हा हा..........
उपस्थिति केलिए हार्दिक बधाई
हा हा हा
:-)))
आदरणीय अरुण कुमार निगम सर, बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है. शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं
हम दोनों को बस्ती वालों ने माना बदनाम किया
लेकिन इस बदनामी ने ही हमको राधा-श्याम किया................. बहुत सुन्दर मतला हुआ है सर
सुंदरता की चाहत ने जुल्फों का काम तमाम किया
आला घर की बेटी को भी है इसने हज्जाम किया.......... ये भी खूब कही
वाह ! गरीबी ने रोटी को चन्दा की उपमा दे दी
मूँगफली के दानों को भी इसने ही बादाम किया........... बढ़िया प्रतीक .... मुफ़लिसी को बढ़िया शब्द मिले है
जीवन की आपाधापी में यह भी याद नहीं है अब
उनकी जुल्फों के साये में कब बैठा आराम किया........ ... वाह वाह .... हासिल-ए-ग़ज़ल
बन न सका इक अच्छा मिसरा सच कहता हूँ मैं यारों
"रात को रो-रो सुबह किया, या दिन को ज्यों-त्यों शाम किया"...........ये बात सही नहीं है बढ़िया मिसरे बने है. मिसरा ए उला की रवानी ने मुग्ध कर दिया और गिरह भी खूब लगी है.
इस बेहतरीन ग़ज़ल की प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई. सादर
// सुंदरता की चाहत ने जुल्फों का काम तमाम किया
आला घर की बेटी को भी है इसने हज्जाम किया // वाह बहुत बढ़िया आदरणीय अरुण जी ... इस अच्छे व्यंगात्मक शेर पर और आपकी गजल पर हार्दिक बधाई आपको !
// वाह ! गरीबी ने रोटी को चन्दा की उपमा दे दी
मूँगफली के दानों को भी इसने ही बादाम किया // बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय , बधाई स्वीकारें..
जीवन की आपाधापी में यह भी याद नहीं है अब
उनकी जुल्फों के साये में कब बैठा आराम किया - लाजवाब अश-आर | वाह !
बन न सका इक अच्छा मिसरा सच कहता हूँ मैं यारों
"रात को रो-रो सुबह किया, या दिन को ज्यों-त्यों शाम किया" - वाह ! क्या स्वीकारोक्ति सन्देश दिया है | बहुत खूब बधाई श्री अरुण भाई
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