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हार्दिक आभार आदरणीया डॉ नीरज शर्मा जी
आदरणीय लक्ष्मण सर इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई निवेदित है सादर
हार्दिक आभार श्री मिथिलेश वामनकर जी
प्रदत्त विषय पर अच्छी रचना , बुनियाद मजबूत रखना बहुत जरुरी है | बधाई इस प्रयास पर..
हार्दिक आभार श्री विनय कुमार सिंह जी | सदर
आधार (संशोधित लघु कथा )
तुम अकेले ही आये हो, बहु को नहीं लाये ? “वह बच्चे को स्कूल छोड़ने व लाने तथा स्कूल में दिया गया होमवर्क कराने में व्यस्त रहती है और अभी स्कूल की छुटियाँ भी नहीं है” केलिफोर्नियाँ से आये चचेरे भाई समीर ने जवाब देते हुए पूछा -
“ये बेबी कौन सी कक्षा में पढ़ रही है ?और भाभी कहाँ है ?” मैंने समीर को मैंने बताया कि तुम्हारी भाभी एक किटी पार्टी में गई है | घर में ट्यूटर लगाने के बाद भी बेबी कोमल नवीं कक्षा में फेल हो गई | पढ़ाई में बिलकुल मन न होने से अब पढ़ाई छुडा दी | अब माँ के साथ घर के काम में हाथ बटा घरका काम सीख लेगी तो बाद में ससुराल से ओलमा तो नहीं आयेगा |
ये तो ठीक है समीर बोला, - पर आजकल अच्छे घर में विवाह के लिए लड़की का पढ़ा लिखा होना बहुत जरुरी है | माँ पढ़ी लिखी होती है तो बच्चे की अच्छी परवरिश कर पाती है और उनकी पढ़ाई पर पूरा ध्यान दे पाती है | माँ-बाप समय निकाल जब तक बच्चों में पढ़ाई का माहौल नहीं बनाते, तब तक बहुत कम घरों में बच्चे पढ़ पाते है | माँ की समझ और उसकी पढ़ाई ही बच्चे के विकास का ठोस और बेसिक आधार होता है |
समीर जाते जाते बोला –“भाई,आजकल अधिक मकान बनाने के बजाय पक्की नीव पर कुटियाँ बनाने का समय आ गया ताकि भूकम्प के झटके झेल सके |” तभी पत्नी को किटी पार्टी से लौटी और मैं अपनी जिन्दगी के पिछले पन्नों को पलटता हुआ सोच में डूब गया |
(मौलिक व अप्रकाशित)
अच्छी लघुकथा पेश की - बधाई हो
शुक्रिया श्री मोहन वेगोवाल जी
राहुल आज बहुत खुश था। आज उसका प्रमोशन जो हुआ था। इस अवसर पर अपने पत्नी को गिफ्ट देने के लिए उसने एक साड़ी खरीदी। घर पर पहुंचते ही उसने अपनी पत्नी को आवाज़ दी ''वाणी ,वाणी .... अरे कहाँ हो भाग्यवान ,जल्दी आओ। ''
''क्या हुआ आज बहुत खुश नज़र आ रहे हो। ''
''खुश क्यों न होऊं , आज मैं अधिकारी जो बन गया हूँ। देखो मैं आज तुम्हारे लिए क्या लाया हूँ ?''वाणी को उसने साड़ी का पैकेट दिया तो वाणी बहुत खुश हुई।
''अरे वाह , ये तो बहुत सुंदर है। थैंक यू माई डियर। ''
इतने में अंदर से माँ की आवाज़ आयी ''राहुल बेटा,क्या हुआ। ये वाणी और तेरे बीच में क्या शोर हो रहा है। ''
''कुछ नहीं माँ। आज मेरा प्रमोशन हुआ है न इसलिए वाणी के लिए साड़ी गिफ्ट लाया हूँ। '' राहुल ने माँ के पास आकर साड़ी दिखाते हुए कहा।
राहुल ने पलंग पर बैठी अपनी माँ के पैर छू कर आशीर्वाद लिया। राहुल जैसे ही अपनी कमरे की तरफ जाने को मुड़ा उसे अपनी माँ की पीठ की तरफ का पुराना सा घिसा हुआ ब्लाऊज लगभग आधा फटा हुआ नज़र आया। वो चुपचाप अपनी आँखें झुका कर अपने कमरे में चल दिया .... और माँ गीली आँखों से गुमसुम सी उसे हाथ में साड़ी ले जाते हुए देखती रही।
मौलिक एवं अप्रकाशित
बहुत खूब आदरणीय सुशील शर्मा जी, "माँ का फटा ब्लाउज देख चुपचाप चला गया", कहीं न कहीं बुनयादी कमजोरी तो है ही| बधाई आपको इस यथार्थ परक रचना के लिये|
लघुकथा के मर्म पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार आदरणीय Chandresh Kumar Chhatlani जी।
वाह वाह बहुत खूब। कमज़ोर बुनियाद को बखूबी से उभारने में सफल रही है आपकी यह लघुकथा।
बधाई स्वीकारें आ० सुशील सरना जी।
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