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बेटी. बहन, ननद अपनी छाप छोड़ गयी ...भाभी को समझ में आ गया होगा. बेटी और माँ के रिश्तों पर बहुत कुछ कहती रचना !
रिश्तों की बुनियाद पर करारी चोट करती हुई रचना ,बधाई आदरणीय नीलिमा जी .
आदरणीया नीलिमा शर्मा निविया जी बहुत बढ़िया लघुकथा हुई है. ये बेटियां ही है जो हमेशा 'मायके वालों' की सुखशांति की कामना भी करती है और तदनुरूप व्यवहार भी. लघुकथा के मर्म को बहुत ही बेहतरीन तरीके से शाब्दिक किया है . इस प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई.
आ नीलिमा शर्मा जी, शायद आपने इस बार के आयोजन की उद्घोषणा को ध्यान से नहीं देखा, विषय बुनियाद था I आपकी लघुकथा विषय के साथ न्याय करती हुई नहीं लग रही I कुछ कहना चाहेंगीं आप ??
आ नीलिमा शर्मा जी , आप ने बहुत ही सच बात कही है. बधाई आप को .
मुझे तो डर है कि बहुरानी के मायके में कहीं एक रुपया चिपका खाली लिफाफा ही न मिल जाए जब वो अपने मायके जाए | बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय | जोरदार प्रहार करती हुए सामयिक कथा के लिए बधाई स्वीकारे आदरणीया नीलिमा शर्मा जी | सादर
बहुत अच्छी लघु कथा है नीलम जी,इसके लिए हार्दिक बधाई किन्तु प्रदत्त विषय से अलग है ये |
लघुकथा अच्छी है नीलिमा जी किन्तु विषय के साथ न्याय नहीं कर पा रही है। आयोजन में भाग लेने के लिए बधाई।
बहुत सुंदर लघुकथा , जो दिल को छु गई
मायके की फ़िक्र बेटियों तो सदा ही करती आई है | अच्छी लघुकथा
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