Tags:
Replies are closed for this discussion.
आदरणीय रवि प्रभाकर जी, लघुकथा में उलझा हुआ कथानक है। साहित्यकार कोई नवांकुर तो होते नहीं हैं जो इतनी बड़ी संख्या में सारों ने ही एक पुस्तक को नकार दिया वो भी उस पुस्तक को जो उनकी सोच व शैली के अनुसार लिखी गई है। वरिष्ठ पुरोधा को एक दम से ऐसा क्या हो गया जो अपनी ही परिभाषाएं बदलने को तैयार हो गया?
बचपन से यही समझा है विद्या ददाति विनयम ,पर इससे उलट क्यूँ होता है दिग्गज साहित्य कार आत्ममुग्ध अहम् के वश में क्यूँ चले जाते हैं नवांकुरों को प्रोत्साहित करने के बजाय हतोत्साहित करते नजर आते हैं विनय उनके आचरण से दूर क्यूँ चला जाता है इस विषय पर बहुत विचार करने की आवश्यकता है ...लघु कथा के विषय ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया |हार्दिक बधाई आपको आ० रवि जी ,इस बढ़िया प्रस्तुति हेतु | एक पंक्ति में स्थापित परिभाषायों को स्थापित परिभाषाओं कर लें टंकण त्रुटी आ गई है |
आदरणीय रवि जी शानदार लघुकथा हुई है. और ये पंचलाइन का झटका-//‘लगता है अब परिभाषाएं बदलने का वक्त आ गया है।’ // बस कमाल.... इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई
अब समय आ गया जब हतोत्साहित करने के बजाय नवांकुर को प्रोत्साहत किया जाय वरना नवांकुर स्वयं पुरोधाओं के अपनी परिभाषा का अहसास करा देंगे | सुंदर लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई श्री रवि प्रभाकर जी
यह लघुकथा किसी नवोदित को प्रश्रय देने या न देने से अधिक पुरोधाओं द्वारा अपनी मठाधीशी को बचाये रखने की जद्दोजहद को अधिक शिद्दत से उभारती हुई है. किसी नवोदित की पुस्तक का उस जगह पहुँच जाना कि राष्ट्रीय पुरस्कार हेतु चयन हो जाये, सहज संभव नहीं है यदि उसके कथ्य में मानकों की तुलना में तथ्यात्मकता न हो. लेकिन पुरोधाओं की बातचीत अब मानक को बदलने को लेकर होना बहुत कुछ को स्पष्ट करता है. यहाँ पुरोधा आने वाले दिनों मे स्वयं को प्रोटेक्ट करने की चिंता में हैं. यही इंगित इस लघुकथा की सफलता है.
भाई रविजी आपकी लघुकथा का इंगित अत्यंत महीन है.
इस सहज लेकिन गहन कथात्मकता को साझा करती प्रस्तुति केलिए हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ, भाईजी.
अपनी अपनी राय!
'मांझी, द माउंटेन मैन' फिल्म देखेने के बाद कुछ मित्रों के बीच परिचर्चा
“क्या फिल्म बनाया है भाई! पूरा 'मुसहरी का सीन' उतार कर रख दिया!”
“ई नवाज्जुद्दीनवा भी गजबे रोल निभाया है, दशरथ मांझी का!”
“राधिका आप्टे ने भी अपनी भूमिका को बखूबी निभाया है!”
“एक आदमी २२ साल तक अकेले पहाड़ काट कर रास्ता बना दे, यह भी सुनने में अजीब लगता है न!”
“दशरथ मांझी को भी गजबे प्रेम था, अपनी बीबी से, शाहजहाँ तो उसके सामने कुच्छो नहीं है”
“लेकिन, तब भी दलितों पर भयंकर जुल्म होता था.”
“महा वाहियात है यह फिल्म! मुसहरनी भला ऐसी सुन्दर हो सकती है! जैसा इसमें दिखाया है? इतना जुल्म थोड़े न होता था, दलितों पर! जैसा इसमें दिखाया गया है!” - एक व्यक्ति जो चुपचाप चर्चा सुन रहा था, अचानक बोल उठा.
आदरणीय जवाहर लाल सिंह जी, मैनें यह फिल्म नहीं देखी सो मैं आपकी लघुकथा समझ नहीं पाया । सादर
आदरणीय रवि प्रभाकर जी, वार्तालाप में फिल्म का सार तो डालने की कोशिश की है ...शायद मेरी कोशिश कारगर नहीं हुई है ... अंतिम पंक्ति से भी आप कुछ अंदाजा नहीं लगा सके तो यह मेरी सम्प्रेषण शक्ति की कमी है! सादर!
आदरणीय जवाहर लाल जी, हम इस फ़िल्म को देखे हैं!यह एक सत्य घटना पर आधारित है!पर फ़िल्म और सत्य घटना में कई विरोधाभाश हैं!फ़िल्म को रोचक बनाने हेतु बहुत कुछ मसाला डाला गया है!मेरा प्रश्न ये है कि आपने इस फ़िल्म की समीक्षा द्वारा क्या परिभाषित करने की कोशिश की है!कुछ स्पष्ट नहीं हुआ!सादर!
आदरणीय तेजवीर सिंह जी, मेरा कहने का तात्पर्य मैं फिर से स्पष्ट करना चाहूँगा-अंतिम पंक्ति का वक्ता यह मानने को तैयार नहीं है कि मुसहरिनी यानी दलित समाज में सुन्दरता भी हो सकती है साथ ही दलितों पर होनेवाले अत्याचारों से भी खुद को वह सहमत नहीं कर पा रहा है ... यहाँ परिभाषा यही है कि दलित के प्रति घृणा आज भी उसके अन्दर जीवित है ... अगर मैं स्पष्ट नहीं कर सका तो एडमिन से अनुरोध करूंगा कि इसे हटा दें और मैं दूसरी लघुकथा पोस्ट करने का प्रयास करूंगा ... सादर!
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |