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बहुत सुन्दर, बेहद सुन्दर ...
वो सुनती रहती और मन ही मन इठलाती रहती, उसका रूप लावाय्र्ण सबको कितना सुहाता है, उसे देख कर उसके रूप के कसीदे पढ़े बिना कोई नहीं रह सकता|
वो मन ही मन सोचती रहती और फिर किसी राजकुमार के सपनों में खो जाती यही उसकी सोच की इति थी|
रूपा और मीता दो सगी बहने उम्र में एक दो साल का फर्क और रूप में ज़मीन आसमान सा फर्क था रूपा जहाँ अपने नाम के अनुरूप अति सुन्दर थी वही मीता दबे रंगत की थी|
रूपा का सारा दिन अपने मुख को निहारने और बालों को सँवारने में जाता वही मीता हमेशा किताबों की दुनिया में खोई रहती अपने इसी शब्दों की दुनिया में गोता लगाती कब मीता पढ़ते पढ़ते शब्दों से खेलती लिखने भी लगी ये उसे भी याद नहीं|
कॉलेज के वार्षिकोत्सव का दिन था| हमेशा की तरह रूपा सजी संवरी घूम रही थी कोई उसी ड्रेस की तो कोई उसकी सुन्दरता की बधाई कर रहा था तभी कुछ ऐसा हुआ जिसे देख सुन वो हैरत में पड़ गई|
कॉलेज के प्रिंसिपल मीता के तारीफों के पुल बांध रहे थे| वे जो एक हिंदी के विख्यात लेखक भी थे और कॉलेज मैगजिन में छपी मीता की कहानी पर उसके लेखन की तारीफ किए जा रहे थे और आगे उसकी कहानी संग्रह निकालने पर अपनी राय व्यक्त कर रहे थे|अब एक नई परिभाषा रूपा के आगे पस्फुटित हो चुकी थी|
लघुकथा में विषय का चुनाव बहुत अच्छा है आदरणीय अर्चना ठाकुर जी, लेकिन मेरी राय में शब्द कुछ कम किये जा सकते हैं| हालाँकि, निःसंदेह वरिष्ठजनों की सलाह ही अधिक उत्तम होगी| इसके अतिरिक्त शायद शीर्षक भी टाइप होने से रह गया है, इसे भी कृपया देख लें| शक्ल और अक्ल के इस अंतर को परिभाषित करती रचना हेतु बधाई स्वीकार करें|
बहुत अच्छी कहानी ,बधाई आपको अर्चना जी
सौंदर्य की परिभाषाओं को दो द्रष्टिकोण से पिरोया है लघु कथा में और ये सच है कहानी का सन्देश भी यही है असली सौन्दर्य गुणों में छुपा है सूरत से सीरत बेहतर होनी चाहिए अच्छा सन्देश देती हुई अच्छी लघु कथा हेतु बधाई आपको अर्चना ठाकुर जी .
आदरणीया अर्चना ठाकुर जी, बहुत बढिया लघुकथा बन सकती है अगर इसकी शैली में कसावट आ जाए।
अच्छा प्रयास है आ० अर्चना ठाकुर जी, सुधिजनो की बातों पर ध्यान देंI रचना के नीचे आपने मौलिक और अप्रकाशित क्यों नहीं लिखा ?
आदरणीया अर्चना जी , लघुकथा एक तेवर वाली चीज होती है । मध्यम सोच नम्र मिजाज से काम नहीं चलता है । यह विषय पर कटाक्ष करते हुऐ तंजदार होना चाहिये । ये एक रोष पुर्ण अभिव्यक्ति वाली विधा है । अतः विषय के प्रति रोष ही आपकी लेखनी को धार देगा । लिखते वक्त प्रवाह तेज हो इसका सतत ध्यान रखना ही लघुकथा को सार्थक रूप दे पायेगा । सादर
आदरणीया अर्चना जी, मनुष्य के आंतरिक गुण उसके बाह्य शारीरिक सौन्दर्य से अधिक महत्त्व के होते है को स्थापित करती बढ़िया लघुकथा हुई है. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई
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