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आदरणीय मनन जी, आरक्षण के मूल के प्रति सजग होने को प्रेरित करती और इसकी वास्तविकता को उजागर करती बढ़िया लघुकथा हुई है. हार्दिक बधाई
आदरणीय मनन कुमार जी, बहुत ही संवेदनशील मुद्दे पर बहुत ही सार्थक कथा लिख विषय को बाखूबी सार्थक करने का सद्प्रयास किया है आपने। असीम शुभकामनाएं
एक सामयिक व् ज्वलंत विषय जिसको नेता कभी सुलझाना नहीं चाहते क्योंकि वो सोने के अंडे देने वाली मुर्गी है , बधाई आपको आदरणीय मनन सिंह जी , सादर
आरक्षण के सच को उजागर करती इस समयानुकूल रचना हेतु बधाई स्वीकार करें आदरणीय मनन कुमार सिंह जी|
वैसे इतनी आसानी से नेताओं की सिट्टी पिट्टी गुम कहां होती है, अच्छा संवाद, बधाई आ. मनन जी
आदरणीय मननजी, आयोजन में सहभागिता के लिए हार्दिक धन्यवाद
सादर्
ससुर जी द्वारा गुस्से से आंगन में फेंकी गयी रोटियां, समस्त नारीत्व के आहत होने के भेद को खोल गयी है । बहुत घरों में बनते हुए खाने के चखने को जूठा माने जाने की मान्यता है जबकि ऐसे ही घरों में भोजन में आई जरा सी कमी में घर की महिलाओं की बेइज़्ज़ती करने से भी नहीं चूकते हैं। अब कहाँ राम और कहाँ ,कैसी शबरी !!!
चंद शब्दों में बेहद गंभीर भाव का समायोजन कथा में निहित हुआ है। बधाई स्वीकार करे आदरणीय सुनील जी।
घरों में नारी के कदम कदम पर होते अपमान का आभास देती हुई सार्थक लघुकथा है किन्तु एक शंका है कि ये उत्तर हुआ कि प्रत्युत्तर. वरिष्ठजनों से समाधान अपेक्षित है. सादर
उत्तर मे ही छूपा हुआ होता एक प्रत्युत्तर है । सादर
आधुनिक शबरी बहुत ही सार्थक शीर्षक दिया है लघु कथा को कहीं कही परिवारों में नारी,जो सबको खाना खिलाती है उनका सब काम करती है सुबह से शाम तक सेवा में लगी रहती है की ये परिस्थति देख पढ़ कर मन बहुत आहत होता है गाँव में तो ऐसे दृश्य आम हैं |
बहुत बहुत बधाई इस सशक्त लघु कथा पर |
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