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आदरणीय पंकज जी बढ़िया लघुकथा हुई है कथा का सकारात्मक अंत प्रभावित करता है. इस प्रस्तुति पर आपको हार्दिक बधाई
आदरणीय पंकज भाई, गजब की कथा लिखी है आपने, मंत्रमुग्ध कर दिया आपकी इस सशक्त लघुकथा ने। किस सहजता के साथ पूरी कथा का निर्वाहन हुआ है, अद्भुत । मुझे तो ये आपकी अब तक की सर्वश्रेष्ठ लघुकथा लगी। कोई सनसनी नहीं, कोई संश्लिष्टा नहीं एकदम अर्थवत् । वाह । सादर शुभकामनाएं
हार्दिक बधाई पंकज जी!अच्छी लघुकथा हुई है!
आदरणीय पंकजभाईजी, आपकी प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद.
संवादों के प्रस्तुतीकरण में इन्वर्टेड कॉमा का प्रयोग सचेत ढंग से होना चाहिये.
शुभेच्छाएँ
पंकज जी सर, सच ही कहा आपने धर्म-विधर्म में अन्तर की सीमायें जब समझ में आती हैं तो व्यक्ति सीमा से बाहर चला ही जाता है और मानवता प्रमुख हो जाती है| इस रचना के सृजन हेतु हार्दिक बधाई प्रेषित है|
छूआछूत जैसी सामाजिक विद्रूपता पर करारी चोट करती अच्छी लघुकथा श्री पंकज जी। बहुत बहुत बधाई
प्रतिउत्तर लघु कथा
“माँ देखो न आज फिर चाचा ने मुझे चश्मिश कहा आप या पापा कुछ बोलते क्यूँ नहीं कभी चश्मिश कभी चश्मेबद्दूर ..ये क्या है मम्मा ? अगर मैंने कुछ कह दिया न !! फिर आप मुझे ही कहोगे..” नीतू ने गुस्से से कहा | “नहीं बेटा वो बड़े हैं, भाई हैं तुम्हारे पापा के तुम बोलोगी तो बुरा लगेगा प्यार से कहते हैं और फिर बेटा ये बात ध्यान रखना कि हर चीज का प्रतिउत्तर भगवान् के पास होता है तो कुछ चीजें वक़्त पर छोड़ कर हिम्मत से आगे बढ़ जाना चाहिए” माँ ने प्यार से समझाया|
(लगभग बीस दिन बाद)
“लो बेटा तुम्हारी छोटी बहन की भी आई साईट वीक हो गई|
न जाने आज कल क्या हो रहा है खानपान में कहाँ कमी आ रही है कि छोटे छोटे बच्चों की आँखें कमजोर हो रही हैं ” अपनी बेटी शालू को नीतू की तरफ आगे बढाते हुए चाचा ने कहा|
“ओह्ह्ह.. चाचा फिर तो अब दो दो चश्मिश,दो दो चश्मेबद्दूर हो गई घर में ”
मौलिक एवं अप्रकाशित
आदरणीया राजेश कुमारी जी लघुकथा बहुत बढ़िया हुई है. मगर कालखंड दोष आ गया है. //(लगभग बीस दिन बाद)// की जगह // तभी अपनी आँखों का टेस्ट करा कर आई बहन को देख कर वह बोली /// करने से कालखंड दोष समाप्त हो जाता . सादर.
मात्र सुझाव है. जरूरी नहीं कि अच्छा व मानाने लायक हो.
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