परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 64 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह उस्ताद शायर जनाब "मंगल नसीम" साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|
"पाले हुए पंछी के, पर अपने नहीं होते"
221 1222 221 1222
मफ़ऊलु मुफाईलुन मफ़ऊलु मुफाईलुन
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 23 अक्टूबर दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 24 अक्टूबर दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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Aadarniya Rajesh Kumarim ji Gazal pr sujhaab dene ke lie bahut bahut aabhaar.
aap ki baat sahi hai
चाहें तुम अपनी जां भी इन पर लुटा दो पर. ki jagah yadi
चाहें तुम अपनी जां भी इन pe लुटा दो पर kr doon to shayad theek ho jaega.
is sher main galti samajh nahi aa rahi krypya margdarshan karien.
हर रोज़ जो बज्में सजती और उजड़ती हैं I
उनकी महफ़िल मैं हर नर अपने नहीं होते I
Aadarnie Manoj Kumar Ahsaas ji Gazal pasand karne k lie bahut bahut shukriya.
आदरनीय अमित भाई , मुशाइरे मे शिर्कत और गज़ल के लिये हार्दिक बधाइयाँ
Aadarnie Giriraaj Bhandaari sir Gazal ko pasand karne ke lie bahut bahut dhanyavaad .
हार्दिक बधाई स्वीकारें l
आदरणीय अमित जी इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई
आ० शेख़ शहज़ाद जी ,ग़ज़ल के भाव तो बहुत अच्छे हैं मगर बह्र के लिहाज से संतुष्ट नहीं कर सकी इस पर और काम करना पड़ेगा |
फिलहाल सहभागिता के लिए हार्दिक बधाई |
आदरणीय शैख उस्मानी भाई , गज़ल का प्रयास आशाजनक है , बहर मे कुछ कमियाँ ज़रूर हैं , आपको ग़ज़ल के लिये हार्दिक बधाई ॥
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