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बहुत बढ़िया कथा आदरणीय _/\_सादर
आदरणीया अर्चनाजी, एक घटना को तार्किक स्वरूप देने का प्रयास भला लगा. इस प्रयास में तनिक और गहनता आवश्यक है. प्रस्तुति हेतु हार्दिक धन्यवाद एवं शुभकामनाएँ
शतरंज--- बदनामी का कलंक
"दीदी , माँ ने पूछा है जो बात सुनी जा रही है उसमे कितनी सच्चाई है ? "
" मुझे नहीं मालूम की घर के सभी लोग मुझसे नाराज क्यों है ?"
"आपको सच में नही पता क्या ? सुनने में आ रहा है कि आप विनय जी के बच्चे की माँ बनने वाली है । "
"ओह्ह ! इसका मतलब करण जी के बिछाए जाल में चिड़िया नही फंसी तो उन्होंने ऐसा जाल बिछा दिया जिसमे से निकलना मुश्किल है !"
"क्या ! करण जी ने ?"
"तुम तो जानती हो की मैं और विनय जी एक दूसरे से प्यार करते है ! करण जी ने एक दिन मुझसे कहा था कि मैं तेरे और विनय दोनों के घर में अच्छी तरह माना जाता हूँ इधर मैं तेरे जीजा का ममेरा भाई हूँ और उधर विनय मेरी बुआ का बेटा । मैं चाहूँ तो ये रिश्ता करवा सकता हूँ। "
"फिर ......?"
"उन्होंने कहा अगर मैं तेरी और विनय की शादी करा दूँ तो मुझे क्या देगी ? , मैंने सोचा कुछ खाने की चीज को कहते होंगे इसलिए मैंने भी हँसते हुए कह दिया कि जो आप मांगो । "
"फिर क्या माँगा उन्होंने ?"
"विनय से शादी से पहले मेरी एक रात......।"
"क्या कह रही हो आप ?"
"हां मुझे भी इसी तरह झटका लगा था । मैंने चीखते हुए उनसे कहा कि आप होश में हो भी कि नही ? आपकी गोद में खेलकर बड़ी हुई हूँ । उन्होंने कहा कि तो क्या हुआ , जीजा - साली के बीच में ये सब चलता है ।"
"ओह्ह , जिन्हें हमारे घरवाले देवता सामान मानते है उनकी सलाह के बिना एक भी कदम नही उठाते वो ऐसे कैसे बोल सकते है ? यकीन नही कर पा रही थी छवि ।"
" फिर .....?"
"बिन हड्डी की जुबान है किधर भी चल जाती है , खैर मैंने भी उनकी जुबान उस समय तो ये कहकर बंद कर दी कि आप विनय के बड़े भाई हो और विनय से रिश्ता जुड़ते ही आप मेरे ज्येष्ठ हो ।"
"दीदी , नीचे करण जी व उनका साला आया है आपको बुलाया गया है ।"
"ओह्ह , तो वो शतरंज की एक और चाल चल चुके है । उन्होंने मुझे चैलेंज किया था कि या तो उनकी बात मान जाऊं वर्ना वो मेरी शादी अपने लँगड़े साले से करवा देगें सिर्फ नाम के लिए , काम वो अपना सिद्ध करेगे ।"
"यकीन नही कर पा रही हूँ दीदी करण जी इतना नीचे गिर सकते है । "
"तभी तो कह रही हूँ कि उनकी करतूत का अंदाज किसी को नही । अब बस तू मेरा एक काम कर दे , विनय जी के पास किसी भी तरह ये खबर भेज दे या तो आज या फिर कभी नही । "
"तो जीजी, क्या अब आप अपनी बाज़ी ....?"
"अरे छोटी ! घिर तो चारों तरफ से गई हूँ लेकिन फिर भी अपने और अपने परिवार पर यूँ 'बदनामी का कलंक' थोड़े ही लगाने दूंगी किसी को भी ।"
मौलिक व अप्रकाशित
आदरणीया नीता जी विषय अनुरूप बढ़िया प्रस्तुति हुई है इस प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई. लघुकथा पर पुनः आता हूँ. सादर
पंक्तियों के बीच में स्पेस छूटने से प्रस्तुति आकार में बहुत बड़ी लग रही है . आप एडिट आप्शन से इसे सही कर सकती है. सादर
आदरणीया नीता जी आपने बहुत ही बढ़िया कथानक चुना है. वाकई परिवारों में ऐसे लोग भी होते है जो अपनी प्रस्थिति का लाभ लेने के लिए किसी भी सीमा तक जा सकते है. लोक लाज़ नाम की चिड़िया इन सफ़ेद नकाबपोशो की असलियत खुलने नहीं देती. ऐसे में आत्मविश्वास और ठोस निर्णय अनिवार्य हो जाते है. इस शानदार कथानक को शब्दिक किये जाने के क्रम में थोड़ी कसावट महसूस हो रही है. इस शानदार प्रस्तुति पर आपको बहुत बधाई
आदरणीया नीता जी यहाँ हम सभी समवेत सीख रहे है. आपने अपनी सदाशयतापूर्ण प्रतिक्रिया से मेरे कहे का जो मान रखा, वह आश्वस्तकारी है. आपका हार्दिक आभार
आदरणीया नीता जी आयोजन में प्रस्तुति पोस्ट करने के पंद्रह मिनट तक एडिट का आप्शन खुला रहता है जो प्रस्तुति के ठीक नीचे आता है (edit)सादर
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