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तलाक शुदा को समाज में खुद का मुकाम हासिल करने सशक्त कथा के लिए बधाई आदरणीय।
प्रेरणादायी बढ़िया लघुकथा आदरणीया रश्मि तरिका जी ,हार्दिक बधाई आपको
आदरणीया रश्मि जी, आपकी रचना की दो पंक्तियाँ मुझे विशेष रूप से प्रभावित कर रही हैं, पहली //मेहँदी तो प्यार के रँग का प्रतीक है और मेरा प्यार मेरे बच्चे हैं ना कि मेरा पति जो मेरी ज़िन्दगी बेरंग कर गया था// और दूसरी, //मासी सिर्फ इस लिए रंगों से नाता तोड़ लें कि वह तलाकशुदा हैं?// पूरी रचना का सार इन्हीं पंक्तियों का भावार्थ ही लग रहा है| कोई स्त्री केवल किसी पुरुष के नाम ही की मेंहदी लगाये, इस प्रथा को समय के अनुसार अब समाज को स्वीकार नहीं करना चाहिए, कई स्थानों पर कर भी नहीं रहा| इसके अलावा //कंचन एक पल रुकी लेकिन फिर मुस्कुराते हुए मेहँदी वाली के पास आकर बैठ गई।// यह पंक्ति भी आपकी रचना को सार्थक बना रही है| हार्दिक बधाई स्वीकार करें इस सुंदर सार्थक रचना के सृजन हेतु|
बहुत सुन्दर और प्रेरणादायक रचना, ऐसे इंसान के नाम का रंग क्यों रखना जो खुद ही गलत हो| बधाई इस प्रस्तुति के लिए
हमारे समाज में तलाकशुदा को अभी भी अजीब निगाहों से देखा जाता है ,और अक्सर नहीं निभ पाने का सारा दोष उसी पर मढ़ा जाता है , क्या स्त्री के जीवन के सारे रंग सिर्फ पुरुष से निहित है ,?. सुंदर विचारोत्तजक कथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय रश्मि जी
अच्छी और संदेशपरक लघुकथा प्रस्तुत हुई है, बधाई आदरणीया रश्मि तारिका जी.
इस सुखान्त प्रस्तुति केलिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीया रश्मि जी
सतत अभ्यासरत रहें. सादर
गुलाल - ( लघुकथा ) –
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सुजाता बाल विधवा थी! सात साल की थी, तीसरी कक्षा में पढ रही थी, तभी उसका विवाह एक सामूहिक विवाह सम्मेलन में कर दिया था! दो साल बाद उसे बताया गया कि उसका पति नदी में डूब कर मर गया !उसे ज़बरन सफ़ेद कपडे पहना दिये!और साथ ही सख्त हिदायत दी गयी कि अब उसे केवल सफ़ेद वस्त्र ही पहनने होंगे! स्कूल भी छुडवा दिया!उसे कुछ भी समझ नहीं आया! पति, जिसे कभी देखा ही नहीं,उसके लिये इतना बलिदान!मगर उसका दुख बांटने वाला कोई नहीं था! उसका बचपन का एक मात्र सखा था विश्वास, वह भी सेना में भर्ती होकर चला गया था! सुना था कि वह होली पर छुट्टी लेकर गॉव आया है! सुजाता पर इतनी सारी पाबंदियां थी कि वह चाह कर भी उसे नहीं मिल सकती थी! होली के दिन सभी हुडदंग में मस्त थे! सुजाता अकेली घर में थी!
"सुजाता, कहां हो तुम"! विश्वास की आवाज़ सुन सुजाता चौंक गयी!
"विश्वास तुम, इधर कैसे"!
"तुमसे होली खेलने"!
"नहीं विश्वास, यह संभव नहीं, मैं एक विधवा हूं, मेरे जीवन में अब किसी भी रंग को स्पर्श करना भी पाप है! मेरे लिये केवल सफ़ेद रंग ही मुफ़ीद है"!
"नहीं सुजाता, तुम समाज की कुरीतियों का शिकार हो , साथ ही तुम पर समाज की थोपी गयी सोच ने तुम्हें भ्रमित कर दिया है! ईश्वर ने तुम्हें सफ़ेद रंग इसलिये दिया है कि तुम इस पर पुनः नये रंग से, अपने जीवन की नयी इबारत लिख सको,क्योंकि सिर्फ़ सफ़ेद रंग पर ही दूसरे रंग चढते हैं"!
सुजाता आगे कुछ कह पाती उसके पहले ही विश्वास ने होली का गुलाल सुजाता की मांग में सिंदूर के रूप में डाल दिया!
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