आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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आदरणीय चंद्रेश कुमार छतलानी जी आपका हार्दिक आभार सार्थक प्रतिक्रिया व्यक्त करने लिए । सर कितने विशेषण प्रदान कर दिए आपने । आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया ही मेरे लिए किसी पुरूस्कार से कम नहीं ।
हार्दिक बधाई आदरणीय रतन जी।बेहतरीन लघुकथा।
इस शानदार व्यंग्यात्मक लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय रतन राठौड़ जी!
बहुत ही प्यारी और सुंदर रचना हुई है विषय पर, बहुत बहुत बधाई
चिराग़ (विरासत)
"क्या मैं कोई ऐसी भाषा बोल रहा हूँ जो आप दोनों परिवारों को समझ नहीं आ रही है ?"
डॉक्टर खुशाल की आवाज़ में गहरा आक्रोश था।
" डॉक्टर साहब ! हम हाँ नहीं कर पायेंगे।अभी हमारे बेटे की उम्र ही क्या है।ये बच्चा हमारे लिए एक अनचाहा बोझ होगा। बहु के मायके वाले चाहें तो उनसे बात कर लीजिये।"
डॉक्टर खुशाल की प्रश्नवाचक निगाहें चन्द्रिका के माँ, पिता और भाई की ओर घूम गई।
" डॉक्टर साहब! हमारे दो बच्चे और भी हैं।उनकी परवरिश और शिक्षा हमारे लिए आसान नहीं है। हमने तो कन्यादान करके अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली।अब तो बेटी ससुराल की ही हुई।हम क्या बोलेँ।"
" देखिये ! चन्द्रिका मर रही है। ब्लड कैंसर कब उसे लील जाय कह नहीं सकते।पर आप लोग चाहो तो एक पुण्य का काम कर सकते हैं।और आपका तो वह अंश है।आप कैसे उसे अपने से दूर कर पा रहे हैं?"
खामोश खड़े चन्द्रिका के पति की तरफ देखकर डॉक्टर खुशाल ने एक और कोशिश की।
"मैं अम्मा बाबूजी के सामने क्या बोलूँ।" पति ने आँखे फेर ली।
"देखिये ! हालात ऐसे हैं कि तुरन्त बच्चे को ऑपरेशन करके बाहर निकालना पड़ेगा।इसके लिए आप लोगों की इज़ाज़त चाहिए। कहीं देर न हो जाय और माँ के साथ बच्चा बेमौत न मर जाय।"
मरघट सी खमोशी देख डॉक्टर खुशाल को लगा वे बचपन में सुनी कहानी के संगमरमर के बुतों से बात कर रहे हैं जो दर्द, प्रेम, और इंसानियत को न देख पा रहे हैं न सुन पा रहे हैं और न महसूस ही कर पा रहे हैं।
उधर वार्ड में अपनी और अपने अजन्मे बच्चे की आसन्न मृत्यु से अनजान आठ महीने की गर्भवती चन्द्रिका, इन सब बातों से बेख़बर आज खुशी से फूली न समा रही है।क्योंकि माँ, बाबा, भाई ,अम्मा, बाबू जी, और पति सभी उसे घर लिवाने जो आये हैं।
आख़िरकार वह दो खानदानों को उनकी विरासत सम्भालने वाला चिराग़ जो देने वाली है।
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