आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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विरासत हज कोई सम्हाल नहीं पाता. सुन्दर भाव व विचार. बधाई इस लघुकथा के लिए. आदरनीय शुभानंशु जी .
आदरणीय ओम प्रकाश जी, रचना पर आने और अपने विचार देने के लिये आभार, सादर.
आदरणीय सतविन्द्र जी, रचना पर आने और अपना विचार देने के लिये आभार, सादर.
आदरणीय कल्पना जी , कथा पर अपने विचार देने के लिये आभार. सादर.
आखिरी पंक्ति नहीं भी होती तो उतनी ही प्रभावी थी रचना, बहुत बहुत बधाई इस रचनाके लिए
अच्छी प्रतीकात्मक लघुकथा है भाई सुनील वर्मा जीI ऐसी रचना किसी भी आयोजन में चार चाँद लगाने में सक्षम होती हैंI लघुकथा पढ़कर बेहद आनंद आया, मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करेंI लघुकथा प्रदत्त विषय के इर्द-गिर्द ही है पर एक बात अवश्य कहना चाहूँगा कि विरासत कभी नई नहीं होतीI नए संस्कार हो सकते हैंI विरासत कहते हैं उत्तराधिकार में मिली किसी चीज़ कोI उत्तराधिकार तभी माना जायेगा यदि उसे आगे देने वाला उसका स्वामी होI दरअसल इस लघुकथा में उस लम्बी नाक वाले ने अपने बेटे को एक परम्परा निर्वहन का दायित्व सौंप कर एक विरासत का बीजारोपण किया हैI अत: इस "नई" विरासत को स्थानांतरित करते हुए यदि वह अपने बेटे से आने वाली नस्लों तक पहुँचाने का वादा भी लेता तो रचना और भी प्रभावशाली हो जाती I
//उनकी अकड़ी हुई लंबी नाक अब पहले से छोटी और सुंदर हो गयी थी// वाह वाह.. आपकी रचनात्मकता और कथा लेखन में नए प्रयोग करने की आपकी रूचि को बयाँ करती बहुत सुन्दर रचना ..हार्दिक बधाई प्रेषित है आपको आदरणीय सुनील जी
आदरणीय सुनील जी, आपने नाक के इर्द-गिर्द अद्भुत लघुकथा की रचना कर दी है. बिलकुल ताज़गी भरी शानदार प्रस्तुति. प्रदत्त विषय अनुरूप इस शानदार लघुकथा हेतु आपको हार्दिक बधाई. आदरणीय योगराज सर के मार्गदर्शन के बाद कथा का पुनर्पाठ करने के क्रम एक सीख भी मिली. हार्दिक आभार सर. सादर
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