For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गीत ........अब हृदय में वेदनाओं का सृजन है |

अब हृदय में वेदना ही का सृजन है,
भीड़ में कहीं खो गया यह मेरा मन है ।


पतझड़ों सी हर खुशी लुटने लगी है,
सच, बहारों ने उजाड़ा फिर चमन है।


जब बहारों ने किया स्वागत हमारा,
प्रीत-पथ के पांव में कंटक चुभन है।


अब उगेंगे पेड़ जहरीली जमीं पर,
आदमी का विषधरों जैसा चलन है।


ये हवा तूफान की रफ्तार सी है,
इसमें हर मासूम के अरमां दफन हैं।


याद रहता है कहाँ, कोई किसी को,
हालात से है जूझता हर तन और मन है ।


ये कहाँ की आदतें सी पड़ गयीं हैं,
हर ठहाके में शामिल रहता रुदन है।


छोड़ कर जाने को मेरा मन ना चाहे,
ज़िन्दगी का नाम ही आवागमन है।


आभा

अप्रकाशित एवं मौलिक 

Views: 536

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 6, 2016 at 10:15pm

पतझड़ों सी हर खुशी लुटने लगी है,
सच, बहारों ने उजाड़ा फिर चमन है।


जब बहारों ने किया स्वागत हमारा,
प्रीत-पथ के पांव में कंटक चुभन है।


अब उगेंगे पेड़ जहरीली जमीं पर,
आदमी का विषधरों जैसा चलन है।

बहुत खूब आदरणीया आभा जी |

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 21, 2016 at 6:47pm

आ० आभा जी , मैं आ० रामबली जी के कथन से सहमत हूँ . सादर .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 21, 2016 at 6:45pm

आदरणीया आभा जी , रचना के लिये हार्दिक बधाइयाँ प्रेषित हैं , स्वीकार करें । आदरणीय रचना मुझे लगता है गीत शिल्प की शर्तें पालन नही कर पा रहीं है । आदरणीया प्राची जी की बातों का ख्याल करें ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 21, 2016 at 4:13pm

बहुत खूबसूरत भाव प्रवण रचना आ० आभा जी 

सभी द्विपदियाँ खूबसूरत भाव समाहित करती हैं , लेकिन कहन को और कसने की और शिल्प को भी और साधने की आवश्यता तो है....

पतझड़ों सी हर खुशी लुटने लगी है,
सच, बहारों ने उजाड़ा फिर चमन है।.......बहारें चमन को कैसे उजाड़ देंगी???? आँधियाँ तूफ़ान होना चाहिए न 

ये हवा तूफान की रफ्तार सी है,
इसमें हर मासूम के अरमां दफन हैं।............यहाँ 'हैं' बहुवचन प्रयुक्त हो गया जबकि द्विपदियों का अंत 'है' से हुआ है 

*वैसे हर मासूम एक वचन हो गया 

इसमें हर मासूम का अरमां दफ़न है....सही होगा 

बाकी भी छोटी छोटी कुछ और चीज़ें हैं, जिन्हें साध कर इस प्रस्तुति में चार चाँद लग जाएंगे . 

शिल्प ग़ज़ल के ज्यादा समीप है..आप इसे ग़ज़ल का रूप आसानी से दे सकती हैं.

सस्नेह 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 21, 2016 at 2:54pm

आ. आभा जी अच्छी रचना है बधाई आपको

Comment by रामबली गुप्ता on September 21, 2016 at 8:14am
सुंदर सृजन है आद० आभा जी किन्तु मुझे यह गीत के स्थान पर ग़ज़ल के जैसा लग रहा है। दूसरी बात कई स्थानों पर प्रवाह में अटकाव है। यदि आप इसे 2122 2122 2122 के वह्र में लिखें तो बेहतर हो।सादर
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on September 20, 2016 at 11:40am
अब उगेंगे पेड जहरीली जमीं पर
आदमी का विषधरों जैसा चलन है ।
वाह्ह्ह आदरणीयाआभा जी बहुत ही सुन्दर। बधाई स्वीकार करें । सादर ।
Comment by Samar kabeer on September 18, 2016 at 2:44pm
मोहतरमा आभा जी आदाब,बहुत अच्छा लगा आपका गीत,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by डॉ पवन मिश्र on September 18, 2016 at 10:15am

वाह आद. आभा जी। बहुत सुंदर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
18 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
yesterday
Admin posted discussions
Monday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service