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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-75

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 75 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब अर्श मलसियानी साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

 
"जहाँ सब कुछ हुआ इतनी इनायत और हो जाती "

मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन

1222 1222 1222 1222

(बह्र: हजज मुसम्मन सालिम)
रदीफ़ :- और हो जाती
काफिया :- अत (इनायत, बगावत, शराफत आदि)
 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 23 सितम्बर दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 24 सितम्बर दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 23 सितम्बरदिन शुक्रवार  लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

आपने मेरी टिप्पणी ध्यान से नहीं पढ़ी ।
वैसे वज़्न तो 11 ही होगा,और अगर उर्दू के हिसाब से देखें तो 12 होगा ।

आदरणीय समर साहब, यदि और रवि में क्या फ़र्क़ है ? यदि कोई फ़र्क़ है तो ऐसा क्यों है ? 

में समझा नहीं ,आप क्या कहना चाहते है ?
हमें हिन्दी अशआर बहुत बढ़िया लगे। उर्दू शब्दों के ज्ञान अभाव में मुशायरे का पूरा मज़ाव लाभ तब नहीं ले पाते, जब ग़ज़ल के बाद कठिन शब्दों के मायने हम जैसों की सुविधा के लिए नहीं दिये जाते। फिर भी सभी अशआर को समझने की कोशिश करते हुए तहे दिल से बहुत बहुत बधाई आपको बेहतरीन प्रस्तुति के लिए मोहतरम जनाब रवि शुक्ल साहब।

आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी , यही दिक्कत हमारे साथ  है , हम उर्दू शब्दों के अर्थ समझ नहीं पाते |इसीलिए मैंने सभी सुधी  जनो से निवेदन किया था कि  उर्दू शब्द के अर्थ पोस्ट के नीचे लिख दें तो हमें आसानी होगी |आपको हिंदी में दिक्कत है |इस दृष्टिकोण से आदरणीय सुधी जन  इस पर विचार कर सकते हैं | लिखने का उद्येश्य यही है कि सब समझ सके |इस उद्येश्य की पूर्ति के लिए यही उचित होगा ,  यह मेरा व्यक्तिगत विचार है |सादर 

आदरणीय काली पद जी हमारा पूरा प्रयास रहेगा आगे से कठिन शब्दो के अर्थ लिख दें । आपके रस भंग का हमें अफ़सोस है ।

आदरणीय शहज़ाद साहब ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति से ग़ज़ल का मान बढ़ा है धन्यवाद। आगे से कठिनशब्दोँ जा अर्थ लिखने की कोशिश रहेगी । असुविधा के लिए खेद है।

आ० शुक्ला जी , बढ़िया गजल कही आपने , बधाई

शब्द , भाव , सम्प्रेसन तीनों में गज़ब का ताल मेल है | इस लाजवाब ग़ज़ल के  लिए दिली मुबारकवाद कुबूल करें आदरणीय रवि शुक्ला जी |

सादर 

अँधेरो की उजालों पर हुकूमत और हो जाती,
समझिए फिर हमें जीने में आफत और हो जाती।.......वाह! वाह !  क्या खूब मतला हुआ है.

आदरणीय भाई रवि शुक्ला जी सादर, मतले से मकते तक शेर-दर-शेर दाद क़ुबूल फरमाएं.इस खूबसूरत गजल पर दिली मुबारकबाद कुबूलें.सादर.

आदरणीय अशोक जी आपकी सराहना से उत्साहित है बहुत अच्छा लगा आपको ग़ज़ल पसंद आई । बहुत बहुत धन्यवाद ।
आ0 रवि शुक्ला जी बहुत खूब बहुत खूब बहुत खूब । बधाई स्वीकार करें

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