आदरणीय साथिओ,
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देशहित
सीमा पार से लगातार हो रही फायरिंग, गोला बारूद की वर्षा और युद्ध की आशंका के कारण सीमावर्ती गाँवों को खाली करवाया जा रहा है। किसान सुच्चा सिंह का घर भी उनमें से एक है। घरेलू सामान, बहू, पोते-पोतियों को दो बैलों की गाड़ी में बैठाया और रवाना हुआ। मीडियाकर्मी उसके विस्थापन को कवरेज करता हुआ साथ-साथ चल रहा था।
मीडियाकर्मी-‘‘घरबार छोड़कर जाना कैसा लग रहा है?’’
सुच्चासिहं-‘‘बहुत दुख हो रहा है।’’
मीडियाकर्मी-‘‘क्या इसके पहले भी गाँव छोड़कर जाना पड़ा था?
सुच्चा सिंह-‘‘हाँ, जी, चार मर्तबा घर-गाँव को छोड़ चुका हूँ।’’
मीडियाकर्मी-‘‘फिर उसके बाद?’’
सुच्चासिंह-‘‘तनाव मिट जाने पर वापस आ जाते हैं।’’
मीडियाकर्मी-‘‘बार-बार घर बार को छोड़ना विस्थापित होना या पलायन करना............।’’
मीडियाकर्मी का सवाल पूरा भी नहीं हुआ था कि सुच्चासिंह गुस्से से बोल पड़ा-‘‘ओ जी! आप इसे पलायन कहते हैं। यह पलायन विस्थापन नहीं है जी, यह तो देशहित का सवाल है। हम इसलिए अपना घर बार छोड़ते हैं ताकि हमारी सेना दुश्मन का मुकाबला कर सके। उसे शिकस्त दे सके। हम महफूज रह सके। इसे पलायन नहीं करते। पलायन तो बंजारे करते हैं। हम कोई बंजारे नहीं हैं। मीडियाकर्मी को सुच्चासिंह का करारा जवाब मिल गया था।
मौलिक व अप्रकाशित
मोहतरम जनाब आरिफ साहिब , प्रदत्त विषय को परिभाषित करती सुन्दर लघुकथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ---
सही बात है, यह तो उस समय का तकाजा होता है कि अपने गांव को छोड़कर कहीं और चले जाएँ| प्रदत्त विषय पर बहुत अच्छी रचना, बधाई आपको
क्या कहने हैं आ० मोहम्मद आरिफ साहिबI बेहद प्रभावशाली लघुकथा हुई है, हार्दिक बधाई स्वीकारें.
बहुत बढ़िया लघुकथा जीवन में हर दिन उठा पटक पर देशप्रेम में कमी नहीं .. वाह ...हार्दिक बधाई प्रेषित है आपको आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी
पलायन ""
" देखो रजनी मै फिर कह रहा हूं मेरी बात मान लो ! मै तुमको बहुत प्यार करता हूं ! " रवि ने फिर मौका देखकर अपनी बात कही !
रवि रजनी का बॉस था और शादीशुदा था !
रजनी के पति संजीव सीमा पर तैनात थे और पिछले साल से लापता थे ! उनकी कोई खबर नहीं मिल पा रही थी ! हर कोई यही कहता कि खोजने के प्रयास किए जा रहे हैं ! संजीव के मां बाप भी आर्थिक रूप से मजबूत नही थे मगर रजनी को मनहूस कहकर त्रास देने में चूकते नहीं थे ! मजबूरन रजनी को रवि के ऑफिस में नौकरी करना पड रही थी । कई बार मन भटकने लगता था मगर हर बार संजीव की वो बात याद आ जाती थी.... फौजी कभी पीठ दिखाकर पलायन नही करता है !
" ठीक है सर मैं आपकी बात मान लूंगी मगर आपको मुझसे शादी करना होगी और संजीव के माता पिता को भी साथ रखना होगा ! कहिये मंजूर है ! "
" मगर... मगर ये नही हो सकता ! मेरी कुछ जिम्मेदारीयां है ! "
" जब आप भाग नही सकते अपनी जिम्मेदारी से तो मै कैसे पलायन कर जाऊं !
अपने फर्ज से न तो कभी फौजी पलायन करते हैं ना ही उनके परिवार वाले ! "
मौलिक
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