परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 77 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब हसरत मोहानी साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|
"बेहोश इक नज़र में हुई अंजुमन तमाम"
मफऊलु फाइलातु मुफाईलु फाइलुन/फाइलातु
221 2121 1221 212/2121
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 25 नवंबर दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 26 नवंबर दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
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आदरणीय महेंद्र कुमार साहब, प्रस्तुत गजल पर उपस्थित होकर उत्साहवर्धन करने के लिए आपका दिल से आभार. सादर.
आदरणीय रक्ताले सर, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है. शेर-दर-शेर दाद-ओ-मुबारकबाद कुबूल फरमाएं. सादर
"करी" शब्द का प्रयोग मुझे अटपटा लगा.
उसने चली वो चाल कि कायल हुए सभी ----- क्या कथ्य यही है. मैं सही समझ रहा हूँ?
जिन्होंने भर दिया है धुँए से गगन तमाम ------ मिसरा ऐसे में सहज लग रहा है.
सादर
प्रस्तुत गजल पर उपस्थिति के लिए दिल से आभार आदरणीय गौरव कुमार पाण्डेय जी. सादर.
मुहतरम जनाब सुरेंद्र नाथ साहिब , सुन्दर ग़ज़ल हुई है , दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ---
दो मिसरों में ऐबे तनाफूर होगया है --( ही -हुए , रहा -है ) देख लीजियेगा
माफ़ कीजिये , जल्दबाज़ी में टाइप होगया , एबे तनफुर नहीं है
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