आदरणीय साथिओ,
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आ.अर्पणा जी रचना कहानी के रूप मे बहुत अच्छी है बाकी इसे लघुकथा के रुप मे स्वीकर नही किया जा सकता. वरिष्ठ जन इस पर प्रकाश डाल ही चुके है. वर्तमान परिप्रेष्य मे सार्थक कथानक के लिए बधाई.
तस्वीर का दूसरा रुख़ (लघु कथा)
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हाल खचाखच भरा हुआ था . अध्यक्षीय भाषण के तुरंत बाद संचालक ने घोषणा की– ‘दोस्तों आज के कार्यक्रम के प्रथम चरण में ‘मुक्तिबोध स्मरण’ के अंतर्गत आपने सात वक्ताओं को जिस धैर्य और गरिमा के साथ सुना उसके लिए आयोजक मंडल आपका आभारी है .अब इसके तुरंत बाद बिना किसी इंटरवल के कार्यक्रम के दूसरे चरण में काव्य-पाठ का आयोजन है . आप सब इसी तरह से शांत बैठे रहैं, शुक्रिया .’
संचालक की बात को अनसुना कर सबसे पहले वे सात वक्ता सभागार से बाहर चले गए, जिन्होंने मुक्तिबोध के स्मरण में लम्बे चौड़े भाषण दिए थे. जाते-जाते उन्होंने अपने चेले चपाटों को भी हाल से बाहर आने का संकेत किया. हाल लगभग आधा खाली हुआ. धैर्यवान कवियों ने पाठ प्रारंभ किया. एक कवि के कविता पाठ के बाद कुछ और लोग उठ गए. तीन कवियों के पढ़ते-पढ़ते हाल में लगभग बीस लोग रह गए. तभी संचालक ने युवा कवि कपोल कल्पित को काव्य पाठ के लिये आमंत्रित किया.
कपोल कल्पित ने माईक संभाला और कहना प्रारम्भ किया- ‘मित्रो , अभी कुछ मिनट पूर्व यह हाल भरा हुआ था. मुक्ति बोध पर चर्चा करने वाले वक्ता बड़ी-बड़ी आदर्श की बातें कर रहे थे. अनुशासन और प्रतिबद्धता के उपदेश दे रहे थे. इन तथाकथित वक्ताओं में कुछ तो इतने व्यस्त होते हैं कि उन्हें आने से पहले ही जाने की जल्दी होती है. कुछ तो इस बहाने अपने महत्त्व का आडम्बर खड़ा करते हैं .मुक्तिबोध के अँधेरे को ये क्या समझेंगे. इन वक्ताओं में से एक भी इस समय सभागार में उपस्थित नहीं है. अपने साथ वे अपने मुसाहिबों को भी ले जाते हैं. उनकी देखा-देखी कई और लोग भी पलायन करते हैं . तस्वीर का यह दूसरा रुख असहनीय है. यदि आप सचमुच साहित्य प्रेमी हैं तो क्या यह चरित्र आपको शोभा देता है . कविता इतनी विरस भी नहीं होती कि वह साहित्य के अनुरागियों को बाँध न सके. आप स्वयम देखिये इस समय सभागार में बीस से अधिक लोग उपस्थित नहीं है. मेरे लिए तो एक श्रोता भी काफी है और मैं उसे कविता सुनाना पसंद करूंगा किन्तु फिर वह अकेला ही हो. यहाँ स्थिति दूसरी है. साहित्य के तथाकथित कर्णधारों का यह दोगलापन मुझे स्वीकार्य नहीं है. मैं इस अपवित्र आचरण के विरोध में कविता पाठ से इनकार करता हूँ. आशा है उपस्थित साहित्य अनुरागी मेरी पीड़ा को समझेंगे और मुझे इस गुस्ताखी के लिए माफ़ करेंगे .’
अभी यह प्रवचन चल ही रहा था कि हाल में एक बदहवास आदमी दौड़ता हुआ आया – ‘गजब हो गया कपोल जी, जल्दी चलिए, आपके घर पर आयकर वालों ने छापा डाल दिया है.’
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(अप्रकाशित व मौलिक )
मुहतरम जनाब गोपाल नारायण साहिब , प्रदत्त विषय को परिभाषित करती लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ----
आ० तस्दीक भाई बहुत बहुत शुक्रिया .
हमाम में सब एक जैसे ही हैं, बढ़िया रचना विषय पर| बधाई आपको
आ० विनय जी , आप्यायित हूँ , सादर .
आ० शेइक उस्मानी साहिब . आपको आभार प्रकट करता हूँ . सादर
आदरणीय गोपाल सर, बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है आपने. इस प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई. सादर
आ० मिथिलेश जी . आपका स्नेह सिर माथे .
आ० नीता कसार जी , अनुग्रहीत हुआ , सादर .
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