आदरणीय काव्य-रसिको,
सादर अभिवादन !
’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का आयोजन लगातार क्रम में इस बार अड़सठवाँ आयोजन है.
आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ –
16 दिसम्बर 2016 दिन शुक्रवार से 17 दिसम्बर 2016 दिन शनिवार तक
इस बार पिछले कुछ अंकों से बन गयी परिपाटी की तरह ही दोहा छन्द तो है ही, इसके साथ उल्लाला छन्द को रखा गया है. -
दोहा छन्द और उल्लाला छन्द
यह जानना रोचक होगा, उल्लाला छन्द दोहा छन्द के कितने निकट है !
हम आयोजन के अंतरगत शास्त्रीय छन्दों के शुद्ध रूप तथा इनपर आधारित गीत तथा नवगीत जैसे प्रयोगों को भी मान दे रहे हैं.
इन छन्दों को आधार बनाते हुए प्रदत्त चित्र पर आधारित छन्द-रचना करनी है.
प्रदत्त छन्दों को आधार बनाते हुए नवगीत या गीत या अन्य गेय (मात्रिक) रचनायें भी प्रस्तुत की जा सकती हैं.
[प्रस्तुत चित्र अंतरजाल से प्राप्त हुआ है]
रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, उचित यही होगा कि एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो दोनों छन्दों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जायेंगीं.
दोहा छन्द के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें
उल्लाला छन्द के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें
जैसा कि विदित है, अन्यान्य छन्दों के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती है.
********************************************************
आयोजन सम्बन्धी नोट :
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 16 दिसम्बर 2016 दिन शुक्रवार से 17 दिसम्बर 2016 दिन शनिवार तक यानी दो दिनों केलिए रचना-प्रस्तुति तथा टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.
अति आवश्यक सूचना :
छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के पिछ्ले अंकों को यहाँ पढ़ें ...
विशेष :
यदि आप अभी तक www.openbooksonline.com परिवार से नहीं जुड़ सके है तो यहाँ क्लिक कर प्रथम बार sign up कर लें.
मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
Tags:
Replies are closed for this discussion.
मेरे कहे के अनुमोदन हेतु आभार आपका... सादर नमन
उल्लाला छंद [ गीत ]
बेघर जन को छीलने
आया खंजर शीत का
बेटा सुख में रम अभी, कंबल ओढ़े प्रीत का
तेरे मुख की चाँदनी
शीतल हर दुख को करे
मरहम तेरे प्यार का
मन के जख्मों को भरे
तेरे होंठों की हँसी
तमगा मेरी जीत का
बेटा सुख में रम अभी,,कंबल ओढ़े प्रीत का
जब तक तेरे पास हूँ
हर दुख से तू दूर है
कल क्या हो किसको पता
चक्र समय का क्रूर है
सबक सिखाता है यही
हार जीत की रीत का
बेटा सुख में रम अभी ,कंबल ओढ़े प्रीत का
मौलिक व् अप्रकाशित
हार्दिक बधाई आदरणीय सतविंदर जी
//तेरे मुख की चाँदनी
शीतल हर दुख को करे
मरहम तेरे प्यार का
मन के जख्मों को भरे//
कितनी कोमलता से ममत्व को परिभाषित किया है आ० प्रतिभा पांडे जीI इस द्वितीय कित्नु अद्वितीय प्रस्तुति पर मेरी दिली बधाई स्वीकार करेंI
इस प्रयास पर आपकी उत्साहवर्धक टिपण्णी मिली , रचना कर्म सफल हुआ ..हार्दिक बधाई आदरणीय योगराज जी ..सादर
आदरणीया प्रतिभा जी उल्लाल छंद आधारित गीत के माध्यम से आपकी दूसरी प्रस्तुति भी चित्रानुरूप एवं सुन्दर हुई है हार्दिक बधाई स्वीकार करें
हार्दिक आभार आदरणीय सत्यनारायण जी
आदरणीया प्रतिभा जी
आदरणीया प्रतिभा जी
माँ और शिशु के प्रेम से युक्त यह दूसरी प्रस्तुति भी अच्छी लगी। हृदय से बधाई छंद आधारित गीत पर।
चलते - चलते.... दोहा और उल्लाला में सब की रचना सुंदर और भाव पूर्ण है। लेकिन यह बात कुछ खटकती है कि प्रायः सभी ने शिशु को बेटा मानकर ही छंदों की रचना की, उसे ही महत्व दिया। और बेटी / पुत्री / बिटिया / लल्ली/ गुड़िया / मुनिया से बचते रहे।
सादर
आपसे शत प्रतिशत सहमत हूँ आदरणीय अखिलेश जी,.. ये चूक तो हुई ही है .... इस तथ्य को इंगित करने के लिए आपका धन्यवाद .. और इस प्रयास को पसंद करने के लिए भी धन्यवाद
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
माँ और शिशु के प्रेम से युक्त यह दूसरी प्रस्तुति भी अच्छी लगी।
हृदय से बधाई छंद आधारित गीत पर।
चलते - चलते.... दोहा और उल्लाला में सब की रचना सुंदर और भाव पूर्ण है। लेकिन यह बात कुछ खटकती है कि प्रायः सभी ने शिशु को बेटा मानकर ही छंदों की रचना की, उसे ही महत्व दिया। और बेटी / पुत्री / बिटिया / लल्ली/ गुड़िया से बचते रहे।
सादर