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बड़ी अच्छी लगती है...

बड़ी अच्छी लगती है ...

हिज़्र में
तन्हाई
बड़ी अच्छी लगती है

यादों की
परछाई
बड़ी अच्छी लगती है

कभी कभी
रुसवाई भी
बड़ी अच्छी लगती है

आँखों की
गहराई
बड़ी अच्छी लगती है

साँसों की
गरमाई
बड़ी अच्छी लगती है

हुस्न की
अंगड़ाई
बड़ी अच्छी लगती है

दिल में
दिल की
समाई
बड़ी अच्छी लगती है

मगर

हक़ीक़ी ज़िन्दगी में


ये अश्कों के मेले
जुदाई की रातें
कसमों के कस्बों में
बिलखती मुलाकातें
सहरा के सीने पे
निशानों की यादें
गुलों के रंगों में
ख़िज़ाओं की बातें
ज़िन्दगी की राहों में
ये बेदर्द बातें
कैसे कह दें
बड़ी अच्छी लगती है

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by Sushil Sarna on December 19, 2016 at 4:38pm

आदरणीय Mahendra Kumar      जी प्रस्तुति को अपने स्नेह का आशीर्वाद देने का हार्दिक आभार। 

Comment by Mahendra Kumar on December 18, 2016 at 10:25am
//ये अश्कों के मेले
जुदाई की रातें
...
कैसे कह दें
बड़ी अच्छी लगती है// वाह! बहुत बढ़िया कविता है आदरणीय सुशील सरना जी। आपको बहुत-बहुत बधाई। सादर।
Comment by Sushil Sarna on December 16, 2016 at 8:19pm

आदरणीय समर कबीर साहिब सृजन को अपने आशीर्वाद से नवाज़ने का तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by Samar kabeer on December 16, 2016 at 4:58pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,अच्छी भावपूर्ण कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Sushil Sarna on December 16, 2016 at 12:52pm

आदरणीया कल्पना भट्ट जी  प्रस्तुति के भावों को स्वीकृति देती आपकी मधुर प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on December 15, 2016 at 10:58pm
वाह । बेहद सुन्दर रचना हुई है आदरणीय । हार्दिक बधाई ।

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