आदरणीय साथिओ,
Tags:
Replies are closed for this discussion.
बेहतरीन लघुकथा ।हार्दिक बधाई आदरणीय सीमा मिश्रा जी।
वाह्ह्ह्ह वाह्ह्ह ढहते हुए किलों को मानों जिन्दगी मिल गई बहुत सुन्दर लघु कथा लिखी है सच में अपने स्कूल को देखने पुरानी स्म्रतियों में खो जाने का एहसास कितना खूबसूरत होता है यह मैं बहुत अच्छी तरह महसूस कर सकती हूँ मुझे ये लघु कथा इस लिए भी बहुत पसंद आई |बहुत बहुत बधाई प्रिय सीमा मिश्रा जी .
आ० सीमा मिश्रा जीI प्रदत्त विषय पर बहुत ही उत्कृष्ट प्रतिकात्मक लघुकथा रची है आपने. बधाई इस रचना के लिए
ढहते किले का दर्द (लघु कथा)
बैसवारा के प्रख्यात क्रांतिकारी राणा बेनीमाधव अपनी जन्मभूमि की माटी का अंतिम दर्शन करने के लिये एक बार फिर शंकरपुर गढ़ लौटे तो अंग्रेजों द्वारा ध्वस्त किये गए अपने किले को देखकर अवसाद में डूब गये . इस किले में कितना इतिहास दफन है . उन्होंने अनमने मन से सोचा . इस समय वे अपनी प्रजा से घिरे थे . सभी की आँख में आंसू थे . राणा ने प्रजा को संबोधित करते हुए कहा – मेरे ताल्लुके के निवासियों , राणा ने तुम्हारे साथ कभी बेइंसाफी नही की और आपने भी हमें भरपूर प्यार दिया . हम तो नवाब वाजिद अली शाह के हाथों बिक चुके थे और मैंने हर कदम उनका साथ दिया . यहाँ तक कि उनकी गिरफ्तारी के बाद वैसी ही वफादारी मैंने बेगम के साथ भी की और अवध मे क्रान्ति की आग को कभी बुझने नही दिया . कितु जब हमारे अनेक साथी ताल्लुकेदार अंग्रेजों से मिल गए तब अंग्रेज अपना प्रभाव फिर से फैलाने में सफल हो गए . ऐसी स्थिति मे क्रान्ति को आगे जारी रख पाना सभव नहीं रहा . प्रजा भी लगातार हो रहे परिणामविहीन युद्धों से ऊब चुकी थी . मैं भी अब बूढा हो चला हूँ . हालांकि उत्साह तो अभी भी बहुत है पर पहले जैसा दम अब नहीं रहा . अवध की बेगम हजरतमहल को नेपाल सुरक्षित पहुचाना अब मेरे जीवन का एकमात्र उद्देश्य रह गया है, जो माँ भवानी अवश्य पूरा करेंगी .’ –राणा अभी यह कह ही रहे थे कि अचानक कुछ लोगों ने तलवारें निकाल कर उन्हें घेर लिया. उनमे से एक चिल्लाया – ‘सब लोग मिलकर राणा को पकड लो. हम इन्हें अंग्रेजो के सामने ज़िंदा ले जायेंगे तो हमें बड़ा इनामो इकराम मिलेगा और जागीरें भी अता की जायेगी .’ अभी उसका कथन समाप्त नहीं हुआ था कि राणा के भाले ने उसका काम तमाम कर दिया . बाकी लोगों को उपस्थित समुदाय ने कब्जे में कर लिया . राणा के चेहरे पर जलाल तारी हो गया . उन्होंने फुफकारते हुए कहा – ‘यही लोग, ऐसे ही लोग इस माटी के कलंक है . हम लडाई अंग्रेजों से नहीं हारे , हमारी हार कौम के ऐसे गद्दारों की वजह से हुयी है और जब तक ऐसे लोग इस धरती पर रहेंगे मुल्क की आजादी हमारे लिए छलावा बनी रहेगी .’ इतना कहकर राणा ने घोड़े को क्षिप्रता से मोड़ा और पलक झपकते अंतर्धान हो गये .
(मौलिक /अप्रकाशित )
आ० आरिफ जी , आभार प्रकट करता हूँ .
aअ० उस्मानी जी , बहुत बहुत शुक्रिया .
अच्छा किस्सा है आ० अग्रज डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी, बधाई प्रेषित हैI इसे ज़रा सूत करके लघुकथा बनाने का भी प्रयास करें तो आनंद आ जाएI (इस बार पूरी तरफ लेफ्ट एलाइंड रहने के लिए हार्दिक धन्यवाद स्वीकारें)
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |