आदरणीय साथिओ,
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आदरणीय संध्या जी, प्रस्तुत लघुकथा का कथानक पुराना होने के बावजूद जीवंत एवं प्रभावशाली भाषा के माध्यम से कथ्य की संप्रेषणीयता अधिक प्रभावशाली बन गई है । भाषा विचाराभिव्यक्ित का सशक्त माध्यम है, प्रस्तुत लघुकथा में भाषा को पात्रानुकूल बनाने के लिए वातावरण विशेष के निर्माण के लिए प्रसंगानुसार देसी व अंग्रेजी भाषा के शब्दों का स्वभाविक प्रयोग /मेमसाब, हमने आप से कई थी , कि साब की चप्पल पै चप्पल चढ़ी/, /मेमसाब मेरी रासी में का लिक्खो है ज़रा पढ़ के सुनाय देउ/ , / 'लाफिंग बुद्धा', विंडचाइम बेडरूम के मेन डोर पर, बैम्बूपाॅट इन्टरेन्स में, डोर वेल, रिवाउन्डिंग बालों को क्लैचर/ लघुकथा के शिल्प सौन्दर्य को चार चांद लगा रहा है । हार्दिक शुभकामनाएं ।
आ९ संध्या जी , बढ़िया कथा प्रयास , बधाई
बहुत खूब ,सहज ढंग से कही गई बहुत प्रभावशाली कथा ...हार्दिक बधाई आदरणीया डॉ संध्या तिवारी जी
कभी कभी पढ़े लोग भी पोंगा पंथी बातों का तब तक विरोध करते हैं जब तक उन पर नहीं गुजरती। तभी तो ये दुकानें आज भी सजी हुई हैं। इतनी सुन्दर रचना के लिए बहुत बहुत बधाई।
हार्दिक बधाई आदरणीय संध्या तिवारी जी।अंधविश्वास पर करारा प्रहार। मानव मन कितना विचित्र है, जिस बात के लिये दूसरे को धिक्कारता है, वक्त आने पर खुद वही कार्य कर बैठता है।बेहतरीन प्रस्तुति।
कई लोग कहते है मै भूत को नहीं मानता, पर जब कोई घटना होती है तो डरने लगते है | इसी तरह सुबह सुबह काना देख, चप्पल पार चप्पल देख में साहब ठिठक गई | लघुकथा कि पञ्च लाइन भी अच्छी है | बधाई आ. संध्या तिवारी जी
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